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अनेकान्त/31
जैन कवि विनोदी लाल कृत 'नवकार मंत्र सवैया'
-डॉ गंगाराम गर्ग तुलसीदास के सौ वर्ष बाद उनकी प्रसिद्ध रचना 'जानकी मंगल' और 'पार्वती मंगल' के आधार पर सोहर छंद में 'नेमिनाथ को नव मंगल' तथा लब्ध प्रतिष्ठ रेखताकार प्रतापसिंह ब्रजनिधि और नागरीदास से पहले रेखता साहित्य की रचना करने वाले विनोदीलाल की एक महत्वपूर्ण रचना 'नवकारमंत्र सवैया' भी है।
विनोदीलाल की अधिकांश रचनाओं में तीर्थकर नेमिनाथ के प्रति अधिक भक्तिभाव होते हुए भी 'नवकार मंत्र सवैया में ऋषभदेव जी के प्रति आराधना भाव अधिक मुखरित हुआ है। भक्ति भाव ।
जाकै चरणारविंदपूजत सुरिंद इंद्र देवन के वृंद चंद सोमा अति भारी है। जाकै नष पर रविकरण वारो, मुष देष्यां कोटि कामदेव छवि हारी है। जाकी देह दुति महा द्रपन देषियत अपनो सरूप भव साथ की विचारी है। कहत 'विनोदीलाल' मन बच तिहू काल,
असै नाभिनंदन कौं वंदना हमारी है। तीर्थंकर ऋषभदेव के तेज और कान्ति का उल्लेख करने के अतिरिक्त उनके महिमागान मे कवि ने उनको उद्धारकर्ता मानकर उनकी शरण भी चाही है
तुम तो जिनंद देव जु गतछिद्र भयो, तुम छांडि कहो अब काहि जाहि ध्याइयो। तारन तरन तुम्हारी सरन आयो, तोहि लाज मेरी सब ऑगुण पीभाइयौ।। मैं तो हूं अजान बुद्धि तुम हौ जिनंद शुद्धि, तुम्हारे गुनानुवाद कहाँताई गाइयो, मन वच क्रम कीये कहत विनोदीलाल,
त्रिभुवन नाथ गति मोरीयौ बनाइये। तीर्थंकरों के पूर्व गृहस्थ जीवन से विरक्त होने तथा समवशरण स्थल में तपस्या करने की स्थिति को सभी जैन भक्तों ने बड़े भक्तिभाव के साथ गाया है। विनोदीलाल का एक सवैया है
सिंघासन तीन जाके आसन विराजमान, सोहत असोक वृक्ष ताकी छवि न्यारी है। तीन छत्र फिरै तिहू लोक के दिवाकर ज्यू, चौसठि चमर सुर ढारित सुढारी है। दुर्दाभ सबद दिव्य ध्वनि तिहू काल होत,