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________________ अनेकान्त/25 और पर्याय (व्यतिरेक) हैं वह द्रव्य है अर्थात् जो यथायोग्य अपनी अपनी पर्यायों द्वारा प्राप्त होते हैं या पर्यायों को प्राप्त होते हैं वे द्रव्य कहलाते हैं | या यों कहिए कि जो उत्पाद (उत्पत्ति), व्यय (विनाश) और धौव्य (स्थैर्य) इन तीनों से युक्त अर्थात् इन तीनों रूप हैं वह सत् हैं और वही द्रव्य हैं। ये द्रव्य छह हैं द्रव्य 1 2 3 4 5 6 जीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल अजीव जीव और अजीव तथा कर्मों के आसव, बंध, संवर, निर्जरी और मोक्ष ये सात तत्व है। इन सात तत्वों की जानकारी नैसर्गिक अथवा अर्जित होती है। और एक बार यथार्थ समझकर फिर उसमें विश्वास दृढ़ हो जाए तो दर्शन विशुद्धि या सम्यक् दर्शन हो जाता है और यही प्रथम सोपान है मोक्ष का। इन सात तत्वों के साथ पाप और पुण्य जोड़लें तो यही नव पदार्थ कहलाते हैं। वास्तव में मूल पदार्थ तो दो ही है, जीव और अजीव। इनके अतिरिक्त जो सात तत्त्व पदार्थ हैं वे जीव और पुद्गलों के संयोग से उत्पन्न हुए हैं। जीव के शुभ परिणाम हों, तो शुभ कर्मरूप शक्ति को पुण्य और अशुभ परिणामों के निमित्त से अशुभ कर्मरूप परिणति शक्ति को पाप कहते हैं। इस तरह पर जीव और अजीव को तत्त्व, द्रव्य और पदार्थ तीनों ही माना गया है। इनमें से धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल और जीव से पंचास्तिकाय कहलाते जीव होते हैं मुक्त और संसारी जिनमें कुछ मन सहित और कुछ मन रहित । एक इन्द्रिय जीव अर्थात् पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति हैं स्थावर जीव । दो इन्द्रिय से लेकर पांच इन्द्रिय वाले तमाम जीव वस कहलाते हैं जो वध, बंधन, अवरोध, जन्म, जरा, मरण आदि दुख भोगते हैं। जब उपरोक्त षट् द्रव्यों का मय पर्यायों के युगपद् ज्ञान हो जाए तो समझो कि ज्ञान संपूर्ण हो गया और वही है केवलज्ञान अर्थात् सर्वज्ञता। अब सवाल पैदा होता है कि आखिर ये द्रव्य करते क्या हैं, इनके कृत्य क्या हैं और किस तरह हैं एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य क्या हैं और किस तरह है एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य के लिए उपयोग? क्या इनका आपस में भी कोई तालमेल या संबंध है? इस का विवेचन करते हुए उमास्वाति ने कहा कि धर्म का उपकार है गति उपग्रह अधर्म का उपकार है स्थिति उपग्रह आकाश का उपकार है- अवकाश उपग्रह काल के उपकार हैं- वर्तना, परिणाम, क्रिया परत्व और अपरत्व पुद्गलों के उपकार है- शरीर, मन, वचन, प्राणापान, सुख, दुख, जीवन और
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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