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________________ अनेकान्त/24 परस्परोपग्रहो जीवानाम (ले. जस्टिस एम.एल. जैन) जैन धर्म का सर्व सम्मत प्रतीक इस प्रकार है . "परस्परोपग्रहो जीवानाम् इस प्रतीक चिनह में जैन मान्यता के अनुसार विराट् विश्व की रेखाकृति है जिसमें तीनों लोक, सिद्ध शिला, रत्नत्रय, स्वास्तिक पंच महाव्रत और अहिंसा दिखाए गए हैं। साथ में 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' यह जो Legend (आदर्श वचन) नीचे दिया गया है, वह उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र के पांचवे अध्याय का सूत्र संख्या 21 है। इस सूत्र का अर्थ क्या है यह समझने के लिए कुछ अन्य संबन्धित सूत्रों को ध्यान में रखना होगा। वे हैं-- 1. सर्वद्रव्य पर्यायेषु केवलस्य 1/29 2. गुणपर्ययवद् द्रव्यम् 5/38 3. सत् द्रव्य लक्षणम् 5/29 4 उत्पाद व्यय ध्रौव्ययुक्तं सत् 5/30 5 अजीव काया धर्माधर्मा काश पुद्गलाः 5/1 6 द्रव्याणि 5/2 7. जीवाश्च 5/3 8. कालश्च 5/39 9. गतिस्थित्युपग्रही धर्माधर्मयोरुपकार. 5/17 10. आकाशस्य अवगाहः 5/18 11. शरीरवाड्मनः प्राणापाना पुद्गलानाम् 5/19 12. सुख दुख जीवितमरणोपग्रहाश्च 5/20 13. परस्परोपग्रहो जीवानाम् 5/21 केवलज्ञान होने पर ही पूर्ण मुक्ति होती है और केवल ज्ञान उस अवस्था का नाम है जब ज्ञान की प्रवृत्ति समस्त द्रव्यों व पर्यायों में हो जाए। जिसमें गुण (अन्वयी)
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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