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________________ अनेकान्त/11 ईश्वरनकोट्टा ईश्वरकोट्टा या ईश्वरकोड (Isvarankotta/lsvarankode) का अर्थ होता है ईश्वर का मंदिर। यह स्थान पालक्काड से लगभग बारह कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं पालक्काड के आसपास का क्षेत्र ओलक्कोड कहलाता है। वहीं से कालीकट या कोभिक्कोड से त्रिरशूर सड़क गुजरती है। उसी सड़क पर मुंडूर से आगे यह स्थान है। वहां की एक पहाड़ी पर एक जैन मंदिर या कोविल के भगनावेश हैं। यहां आदिनाथ और नेमिनाथ की दो पदमासन प्रतिमाओं को स्थानीय नंपूतिरि ब्राह्मण शिव और क्षेत्रपाल की प्रतिमाएं मानकर उनकी पूजा करते हैं। उपर्युक्त स्थान की जैन तीर्थंकर प्रतिमा के साथ अशोक वृक्ष का अंकन है। ध्यानस्थ होने के कारण भी विद्वान इन्हें तीर्थंकर प्रतिमा ही मानते हैं। केरल में इसी प्रकार के उदाहरण और भी हैं। यथा स्थान उनका उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है। पास्वश्शेरी में चद्रप्रभु अरुयप्पा के रूप में पूजित पालककाड से त्रिरशूर जाने वाली सड़क पर पालघाट से लगभग 29 कि. मी की दूरी पर यह स्थान है। यहां का पास्वर्शरी पकि भगवती कोविल किसी समय जैन मंदिर था। किंतु अब यहां की मुख्य देवता भगवती है। किसी समय यहां चंद्रप्रभु प्रतिष्ठित रहे होगे । इन दिनों उन्हें मुख्य मदिर से बाहर एक छतरहित अहाते मे रख दिया गया है। पंतिमा पर चंद्रप्रभु का पहिचान चिन्ह अर्धचंद्र पादपीठ पर अंकित है। तीर्थंकर प्रतिमा पर तीन छत्रों को भी देखा जा सकता है। खेद का विषय है कि 1986 में प्रकाशित केरल स्टेट गजेटियर खंड दो के अंत में इस प्रतिमा का जो चित्र छपा है, उसके नीचे छपा है ठनककी ज च्तनोंमतल जैन प्रतिमाविज्ञान या जैन कला से परिचित कोई भी व्यक्ति इस प्रतिमा की पहिचान तीर्थंकर प्रतिमा के रुप में कर सकता है। हो सकता है, संपादक ने भूल करदी हो किंतु भ्रांति तो उत्पन्न हो ही गई। पास्वश्शेरी के निवासियों द्वारा इस प्रतिमा की उपासना शास्ता या अरूयप्पा के रूप में की जाती है। यह कोविल कब भगवती कोविल बना इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है। पालककाड के जनजीवन पर जैन प्रभाव अधिक जैन श्राविका कण्णगि और कोलवन की अमर गाथा का प्रभाव पूरे केरल में परिलक्षित है। किंतु इस जिले में उनकी करूण कहानी संबंधी लोकगीत बहुत प्रचलित हैं। कठपुतली प्रदर्शनों में भी कुछ परिवर्तनों के साथ यह गाथा गाली मंदिरों के बाहर गाई और प्रदर्शित की जाती है। इस दंपति की विस्तृत कहानी के लिए देखिए कोडगल्लूर नामक प्रकरण । उकस तमिलनाडू और श्रीलंका तक विस्तृत है।
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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