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________________ अनेकान्त/8 ने एक होस्टल का निर्माण करा दिया है जो कास्मोपोलिटन होस्टल कहलाता जैन सामग्री से भी निर्मित टीपू सुल्तान का किला पालककाड में ही शहर से लगा हुआ एक किला है जो कि टीपू सुल्तान के किले के नाम से जाना जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इस किले के निर्माण में मणिक्यपट्टणम् नामक जैन कोविल की सामग्री का उपयोग टीपू सुल्तान ने किया है। उसके कुछ चिन्हों पर किले चलकर एक नजर डालें। यह किला जैनमेड से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है। उसके पास का मैदान फोर्ट मैदान कहलाता है। बसें आदि साधन उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि यह किला बहुत प्राचीन है। हैदरआली ने इसे ठीक-ठाक कराया और टीपू सुल्तान ने इसे नया रूप दिया। अंग्रेजों ने भी इसे अपनी सुविधा के अनुसार ढाला। इस कारण वहां अग्रेजी कला भी दिखाई देती है। आजकल इसमें रजिस्ट्रेशन कार्यालय लगता है। यह टीपू कांट कहलाता है। किले का मुख्य द्वार लकड़ी का बना हुआ है। इसके ऊपर बाई ओर सुंदर नक्काशीवाले पाषाण जड़े हैं। कुछ पर आमलक जैसी रचना है। कुछ शिखर भी दिखाई देते हैं। संभवतः वे देवकुलिकाओ के हों। बीच में दक्षिण भारतीय ढग के आले हैं जिन पर मेहराव जैसी रचना जान पड़ती है। दाहिनी ओर की रचना में चौकोर शिखर स्पष्ट देखे जा सकते हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के दाहिनी ओर के बरामदे में मीन युगल और एक अतिरिक्त मीन का उत्कीर्णन है। बांई तरफ के नीचे के स्तंभो पर कमल का अंकन स्पष्ट देखा जा सकता है। कुछ स्थानो पर चित्रकारी मिट भी गई है। - इस किले के प्रांगण की दीवाल में दो हाथी लक्ष्मी का अभिषेक करते दिखाई पडते हैं। स्मरण रहे, वह दृश्य तीर्थकर की माता के सोलह स्वपनों में से एक है ओर जैन मदिरों में उत्कीर्णन के लिए एक प्रिय विषय है। वहां एक रचना तोरण जैसी भी है। सबसे अत के गेट में दो स्तभों के नीचे कमल अकित हैं। उससे आगे के सरदल पर भी कमल है और कुछ लेख-सा जान पडता है। एक छोटी कोठरी में कमल चित्रित है। जैनों के लगभग सभी प्रिय प्रतीक जैसे कमल, मीन युगल, अभिषेक करते हाथी, देवकुलिकाओ के शिखर आदि उपस्थित है। इनसे भी इस बात की पुष्टि होती है कि जैन कोविल या मदिर की समग्री का प्रयोग इस किले के निर्माण या अपने अनुरूप निर्मिति मे किया गया है। समीपस्थ राज्य कर्नाटक के बेलगांव नामक शहर में जो किला है, उसमें जैन मूर्तियोंवाले पाषाण अनेक स्थलों पर देखे जा सकते हैं। प्राचीन महावीर, पार्श्व शिलालेख पालककाड जिले के काबस्सेरी अंशम् (गाव) के पास ही एक पहाडी का नाम एककिनुन्नु है जिसका अर्थ होता है मंदिरोंवाली पहाडी। उस पर एक भग्न मंदिर स्थित है। स्थानीय लोग उसे चकिकवार तोट्टम् या कुंडम् कहते हैं। केरल के
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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