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________________ अनेकान्त/ तीर्थंकर पदमासन में हैं। आदिनाथ के घुटनों के नीचे दो चंवरधारी अंकित हैं। चौबीसी के शीर्षभाग पर कीर्तिमान है। उपरोक्तलिखित कोष्ठ से आगे जो कोष्ठ है उसमें दिवार के पास एक ओर घोड़े पर सवार ब्रह्मदेव हैं तो दूसरी ओर भगवान पार्श्वनाथ की शासनदेवी पद्मावती प्रतिष्ठित हैं। महादेवी पद्मावती के मुकुट पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ अंकित हैं। यहां पाषाण मुकुट के ऊपर एक ओर पीतल का मुकुट देवी को लगा दिया गया है। एक अत्यंत साधारण वेदी पर महावीर, पार्श्वनाथ और सिद्ध परमेष्ठी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। बाहुबली भी कायोत्सर्ग अवस्था में विराजित हैं। इसी फलक पर दोनों ओर पार्श्वनाथ के यक्ष धरणेंद्र और यक्षिणी पद्मावती भी अंकित हैं। चंद्रप्रभु की एक छोटी धातु प्रतिमा भी इसी कक्ष में स्थापित है। यहां यक्ष-यक्षी की जो मूर्तियां हैं, वे काले पाषाण की हैं ओर बहुत प्राचीन बताई जाती हैं। ___ कोविल में प्रवेश करते समय के पहले खाली प्रकोष्ठ में दो स्तंभों पर मामूली नक्काशी है। एक स्तंभ पर ब्रहमदेव उत्कीर्ण हैं। वहीं घंटा लगा है जिसे कन्नड में जयगंड कहते हैं। मुखमंडल सीमेट कंक्रीट का नया बना है। उसमें अंदर की ओर अर्धचंद्र और स्वस्तिक बनाए गए हैं। मंदिर से बाहर के अहाते मे क्षेत्रपाल की भी एक मूर्ति है। पालककाड का यह जैन कोविल या मंदिर साधारण अवश्य है किंतु वह साधारणता सभवत इसकी प्राचीनता ही सिद्ध करती है। केवल पाषाण से तथा बहुत कम अंलकरण से निर्मित यह मंदिर अति प्राचीन होगा और उस समय की सूचना देता जान पडता है जब अंलकरण कला का इतना विकास नहीं हुआ होगा। इसके अतिरिक्त वह अनेक युगों और समय की गहरी, विध्वंसकारी घटनाओं का भी साक्षी जान पड़ता है। सभवतः किसी अदृष्य शक्ति ने इसकी रक्षा की होगी। अनुश्रुति है कि इस कोविल में विद्यानंदि, समंतभद्र जैसे आचार्यों का भी आगमन हुआ था। मंदिर के पास ही अडतीस फीट गहरा एक कुआ है जिसका पानी कभी नहीं सूखता। उसके आसपास के कुओ का पानी सूख जाता है। उसमें उतरने के लिए सीढियां भी बनी हुई है। ___कोविल मे पूजन के समय फूल, अंगूर और काजू आदि फल चढ़ाए जाते इस स्थान पर ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। चंद्रप्रभ मदिर का प्रबंध एक ट्रस्ट करता है। मंदिर और ट्रस्ट का पता निम्न प्रकार है Chandranath Jain Temple, Jain Medu, Vadakkan thera, P.O. Palaghat, Pin - 678 812, (Kerala). उपर्युक्त कोविल के सामने की कलपट्टा के परम जिनधर्मप्रेमी श्री शांतिवर्मा
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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