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अनेकान्त/6 लाभान्वित होते थे तथा चंद्रनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार मुंडुर के किसी श्रावक ने करवाया था। मंदिर की निर्मिति
पालघाट का जैन मंदिर आठवें तीर्थंकर के नाम पर जैन टेम्पल कहलाता है। मंदिर के बाहर अंग्रेजी में जैन टैम्पल लिखा हुआ है। पूजन के बाद पहुंचने पर अर्चक या पुजारी से कहकर मंदिर खुलवाना पडता है। अहाते से लगा हुआ ही श्री जिनराजदास का घर है। चंद्रनाथ स्वामी मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। वह बत्तीस फीट लंबा और बीस फीट चौड़ा है। ऊंचाई भी अधिक नहीं है। इस समय जो छत है, वह कंक्रीट की बना दी गई है। अनेकों बार जीर्णोद्धार के कारण उसकी प्राचीनता के आंकलन में कठिनाई उत्पन्न हो गई है। छत का भार आठ ग्रेनाइट स्तंभो की ही दीवालों पर है। मंदिर पर शिखर भी नहीं है। इसी प्रकार उसकी बाहरी दीवालों पर कोई नक्काशी नहीं है। उसकी अंदरूनी दीवालों पर भी बहुत कम अंकन है। इस मंदिर में या उसके स्तंभों पर कोई शिलालेख नहीं है। यहां जो भी शिलालेख रहे होंगे, उन्हें टीपू सुल्तान ने पालघाट स्थित उसके बनवाए हुए किले में लगवा दिए। उस किले में ब्राह्मी में शिलालेख पाए भी गए हैं।
चंद्रप्रभु मंदिर के सामने बलिपीठ है। उसके बाद एक चबुतरा है जिसके जगले पर हाथियों का अंकन है। इस चबूतरे के संबंध में केरल के स्मारकों के विशेषज्ञ श्री एच. सी सरकार ने पुरातत्व विभाग द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका में यह मत व्यक्त किया है कि यह चबूतरा किसी ऐसे प्राचीन मंदिर का अधिष्ठान है जो कि नष्ट हो गया।
चंद्रप्रभु मंदिर में कुल चार छोटे-छोटे कक्ष हैं। गर्भगृह में मंदिर के मूलनायक चंद्रप्रभु की पद्मासन प्रतिमा श्वेत पाषाण की है। उसके पीछे एक फलक है जिस पर स्तंभों पर आधारित तोरण एवं कीर्तिमुख हैं तथा उसके दोनों ओर अपने मुख से जलधारा छोडते मकर बने हैं। यह अलकरण आकर्षक है। प्रतिमा के सामने ताबे का एक सिद्धचक्र है। मूर्ति के सामने एक चौखटा लगा है जिसमें तीनों ओर दीपक जलाए जा सकते हैं। बताया जाता है कि गर्भगृह में छह फीट ऊंची प्रतिमा थी जो कि मुस्लिम आक्रमण के समय सुरक्षा के लिए अन्यत्र ले जाई गई थी किंतु इस समय वह कहां है इसका पता नहीं पड सका । गर्भगृह के सरदल पर आदिनाथ की एक लघु मुर्ति पदमासन में उत्कीर्ण है।
गर्भगृह से आगे के कोष्ठ में एक कोने में दसवे तीर्थंकर शीतलनाथ की यक्षिणी ज्वालाप्रमालिनी की मूर्ति है तो दूसरे कोने में सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के यक्ष की प्रतिमा स्थापित है। दाहिनी ओर पांच नाग हैं जिनकी पाषाण प्रतिकृति पर फूल चढाए जाते हैं। स्मरण रहे, सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा अंकन पांच फणों से युक्त किया जाता है।
उपर्युक्त कोष्ठ के बीच में पाषाण की एक साधारण सी वेदी पर एक चौबीसी स्थापित है। उसके मूलनायक ऋषभदेव हैं। वे कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं और शेष