SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/4 शिव मंदिर में चरण जैनमेड़ के रास्ते की उपर्युक्त नदी में एक शिव मंदिर है जो कि कल्पत्ति विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर जो चरण हैं, वे संभवतः जैन हैं। शिव मंदिर में चरण नहीं देखे । एकाध अपवाद हो सकता है। जैन मंदिरों में एवं तीर्थस्थानों पर चरण बहुत-सी जगहों पर स्थापित पाए जाते हैं। वह प्रथा अत्यंत प्राचीन है। वैसे भी कत्पत्ति की व्युत्पत्ति यह बताती है कि इस मंदिर की विशेषता चरणों के कारण है न कि शिवजी के कारण। कल का अर्थ है पाषाण ओर पति से आशय है पाद यानी चरण। कुछ विद्वानों का मत है कि यहां जो रथोत्सव होता है, वह जैन रथोत्सव से समानता रखता है। यह बताया जाता है कि इस मंदिर का पुरातत्व भी जैन पुरातत्व जैसा लगता है। इस विषय में शोध की आवश्यकता है। संभवतः उथल-पुथल के दिनों में यह जैन मंदिर से शैव मंदिर हो गया हो। चंद्रप्रभु मंदिर वर्तमान मंदिर कितना प्राचीन है, इसका निश्चय कर सकना कठिन है क्योंकि इसका अनेक बार जीर्णोद्धार किया गया है। यह बात मंदिर को देखने पर स्पष्ट हो जाती है। खेद का विषय है कि केरल सरकार द्वारा प्रकाशित गजेटियर के दूसरे खंड में चंद्रप्रभु के आगे कोष्ठक में विष्णु लिख दिया गया है। विष्णु से इस कोविल का कोई भी संबंध नहीं है न भूतकाल में कोई संबंध रहा है। इस स्थान से एक जिन प्रतिमा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को प्राप्त हुई थी जिसके संबंध में केरल के मंदिरों के विशेषज्ञ श्री एच सरकार का यह मत है कि वह नौवीं शताब्दी की हो सकती है। उनका अनुमान प्रतिमा की निर्माण शैली पर आधारित है। प्रतिमा के कंधे गोलाई लिए हुए हैं तथा शरीर स्थूल नहीं है। वह पर्यकासन में है और पुरातत्व विभाग की सपत्ति है। श्री सरकार उसे उत्तर भारतीय शैली में निर्मित मानते हैं। वह प्रमाणित करती है कि पालघाट में जैनधर्म बारह सौ वर्ष पूर्व अस्तित्व में था। कहा जाता है कि किसी समय माणिक्यपट्टणम् में 250 जैन परिवार टीपू सुलतान के आक्रमण से पहले रहते थे। कितु इस समय वहां केवल एक ही परिवार रह गया है जो कि इसी मंदिर के अहाते में निवास करता है। इस परिवार का सबसे बडा सदस्य “संघनायक की पदवी धारण करता है। जहां किसी समय माणिक्य का व्यापार होता था, वहां आज इमारती लकडी के कारखाने लगे हुए हैं । उपर्युक्त संघनायक परिवार के क्रमागत वंशज श्री जिनराजदास ने प्रस्तुत लेखक को बताया था कि चंद्रप्रभ मंदिर कम से कम एक हजार वर्ष प्राचीन है। उसका निर्माण जैन सघम् या समाज ने कराया था। उसके तत्कालीन संघनायक थे श्री इज्जण सट्टर (ljanna suttur (Somear) केरल के इतिहास को काफी खोजबीन के बाद जिलेवार सरल शैली में
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy