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यह गाथा मूलाचार में पायी जाती है। यथाजस रागो य दोसो य वियडिं ण जणेंति दु । तस्स सामायियं ठादि इदि केवलिसासणे ।। मूलाचार-7/26 जो दु अहं च रूपं व झाणं वज्जेदि णिच्चसा ।
तस्स सामाइयं ठाई इदि केवलिसासणं ।। निममसार - 129 जो दु अट्टं च रूद्दं च झाणं वज्जदि णिच्चसा । तस्स सामायियं ठादि इदि केवलिसासणे ।। मूलाचार-7/31 जो दुधम्मं च सुक्कं च झाणं झाएदि णिच्चसा । तस्स सामाइणांठाई इदि केवलिसासणे ।। नियमसार - 133
अनेकान्त / 34
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यह गाथा मूलाचार मे मिलती है। उसका मूलपाठ निम्न प्रकार हैजो दुधम्मं च सुक्कं च झाणे झाएदि णिच्चसा ।
तस्स सामयियं ठादि इदि केवलिसासणे ।। मूलाचार-7/32 ण वसो अवसो अवसरस कम्ममावासयं ति बोधव्वा ।
त्ति त्ति उवाउं तिय णिरवयवो होदि णिज्जुत्ती । | नियमसार - 142 यह गाथा मूलाचार मे यथावत् रूप मे पायी जाती है। यथाण वसो अवसो अवसरस कम्मभावसासयं ति बोधव्वा ।
जुत्ति त्ति उवाय त्ति य णिरवयवा होदि णिज्जुत्ती ।। मूलाचार-7-14
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि नियमसार की प्रवचनसार मे दो, समयसार
मे दो, पचास्तिकाय में दो, भावपाहुड मे तीन, भगवती आराधना मे तीन, मूलाचार मे बाईस, गोममटसार जीवकाण्ड मे दो, आवश्यक निर्युक्ति मे दो, महापच्चक्खाण मे छह, आउरपच्चक्खाण (1) मे दो, आउरपच्चक्खाण ( 2 ) मे एक, वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे आठ, चदावेज्झयं मे दो, तित्थोगाली मे एक, आराहणापयाण मे एक, आराहणपहाया (1) में दो, आराहणावडाया (2) मे एक तथा परणविभक्ति मे तीन गाथाएँ प्राप्त होती है। नियमसार की गाथा सं 99 से 105 तक की सात गाथाएँ प्रत्याख्यान से सम्बन्द्ध है। ये सातो गाथाएँ अनेक ग्रन्थों मे उपलब्ध हैं । इसी प्रकार नियमसार की गाथा सं 126 से 129 तक की पाँच गाथाएं मूलाचार में एक साथ मिलती हैं । DO