SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/25 प्राणातिपात विरति, सर्वमृशावाद विरति, सर्व अदत्तादान विरति एवं सर्ववहिरादान विरति है। भ0 महावीर के 'पंच महाव्रत' चातुर्याम का ही विस्तारीकरण है जिसमें स्त्री को चेतन परिग्रह के अन्तर्गत समावेशित कर स्त्री के प्रति भोग-दृष्टि का त्याग कर ब्रह्मचर्य को अपरिग्रह में ही समालीन कर लिया गया था। ___ पार्श्वनाथ अहिंसा के प्रबल सम्वाहक बने । अहिंसा पर्यावरण सरक्षण का मूल आधार है। आज मानव हथियारो की अपेक्षा रेडियोधर्मी विनाशक धूल से ज्यादा घबराया हुआ है । अहिसा-प्रकृति और पर्यावरण को सरक्षित करने का पहला पाठ पढाती है । भ पार्श्वनाथ ने अहिंसा का समर्थ उपदेश देकर अनार्य व आर्य जातियों को अहिंसा धर्म मे सस्कारित किया। भ0 पार्श्वनाथ की तपस्या का मूलस्थान 'अश्व-वन' था। वस्तुतः वनों पर आधारित सहजीवी जीवन पद्धति मे अहिंसा की पूर्ण प्रतिष्ठा है। जिससे भोजन, पेय, औषधि रसायन आदि की व्यवस्था सम्भव है। प्राकृतिक वनो से पर्यावरण पूर्ण 'सन्तुलित' रहता है। कल्पवृक्ष की अवधारणा वन सस्कृति का श्रेष्ठ अवदान का प्रतीक है। वृक्षो को उस समय 'कल्पवृक्ष' कहा जाता रहा जब वे जीवन की सारी आवश्यकताएँ इतनी अल्प व सीमित हुआ करती थीं कि वे वनो व वृक्षों से पूरी हो जाया करती थी। भ0 पार्श्वनाथ वन सस्कृति से जुडे 'महायोगी' अनुत्तर पुरुष थे। उनका दिगम्बरत्व प्रकृति व पर्यावरण से तादात्म्य स्थापित करने के लिए था। वे रमणीय थे। यही कारण है कि वन बहुल प्रान्त बिहार व उडीसा तथा बंगाल में फैले लाखो सराक बगाल के मेदिनीपुर जिले के सदगोप व उडीसा के रगिया आदिवासी इनके परमभक्त है। निश्चित ही पार्श्वनाथ के उपदेशों का इनके जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ा जिससे ये जातियाँ परम्परागत आज भी इन्हे अपना 'कुल देवता' मानती है। तय है कि वन पर्यावरण के सन्निकट रहने वाले इन आदिवासियो को भगवान पार्श्वनाथ की पर्यावरण संरक्षण दृष्टि अत्यत प्रभावक व रुचिकर लगी होगी। पार्श्वनाथ के शरीर का वर्ण हरित था । हरित वर्ण वृक्षो की हरियाली व वनों की हरीतिमा का प्रतीक है। अत हम कह सकते है कि पार्श्वनाथ का परमौदारिक शरीर पर्यावरण संरक्षण का जीवन्त उदाहरण है। भ0 पार्श्वनाथ प्रथम पारणा के दिन आहार हेतु गुल्मखेट नगर आये थे जहाँ धन्य नामक राजा ने नवधा भक्ति पूर्वक परमान्न आहार दिया। तत्पश्चात् देवों ने पंचाश्चर्य किये। उन सभी पंचाश्चर्यों का सम्बन्ध पर्यावरण व उसके संरक्षण से है। ये है - शीतल सुगंधित पवन का बहना, सुरभित जल वृष्टि, देवकृत पुष्प वर्षा, देव गुन्दभि (कर्ण प्रिय सगीतिक ध्वनियाँ) एव जय घोष | भ0 पार्श्वनाथ की निर्वाण भूमि- श्री सम्मेद शिखर है जो बिहार प्रान्त मे 'पारसनाथ हिल' के नाम से जानी जाती है। यह जैन तीर्थों की सबसे पवित्र भूमि है। यहाँ से 20 तीर्थकर तपस्या कर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। यह पर्वत सघन वन से आच्छादित है और पर्यावरण संरक्षण का जीवन्त स्थान है। 'पारसनाथ टोक
SR No.538049
Book TitleAnekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1996
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy