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अनेकान्त/24 है। पार्श्वकुमार की दृष्टि पर्यावरण संरक्षण की होने से उन्होंने महीपाल तापस से व्यर्थ ढेर सारी आग न जलाने के लिए कहा। इससे कमठ का जीव तापस विगत भवों के प्रतिशोध से तमतमा कर आग-बबूला हो जाता हैं तथा काष्ठ के मोटे मोटे लट्ठो को विदीर्ण करने के लिए उठाता है। पार्श्वकुमार ने अपने अवधिज्ञान से जाना कि जिन काष्ठ लट्ठों को, वह चीरने जा रहे है। उसमें युगल सर्प हैं। दयार्द्र ‘पार्श्व' कुल्हाड़ी से उन काष्ठों के काटने से मना करते हैं लेकिन वह तापस उल्टा कुपित होकर उनका विदारण कर देता है, जिससे उसमें स्थित युगल सों के दो टुकडे हो जाते हैं। करुणा भाव से पार्श्व कुमार उन्हें कल्याणकारी महामत्र णमोकार सुनाकर संबोधते हैं, जिसके प्रभाव से वही युगल, धरणेन्द्र व पद्मावती होते हैं, जो आगे चलकर भ0 पार्श्वनाथ की घोर-उपसर्ग से रक्षा करते है। इस घटना से दो तथ्य उजागर होते हैं- (1) बालक पार्श्व की दृष्टि में अप्रयोजनीय लकडी जलाना पर्यावरण संरक्षण के प्रतिकूल है। (2) निष्काम भाव से अहिंसा की भावना भाने से बाह्य व आभ्यन्तर पर्यावरण स्वच्छ बनता है।
दुष्ट सम्बर ने सात दिन तक भीषण उपसर्ग किये। वे सभी पर्यावरण प्रदूषण के ही रूप थे। अपार जल राशि, अग्नि की प्रचण्डता, तेज वायु के झझावात, मेघ गर्जन, तडित की भंयकर कर्कश ध्वनियाँ, पर्वत खण्डों का प्रबल आवेग एवं नर-कंकालों सहित क्रूर हिसक नृत्यादि- इन प्रदूषणों से रक्षा करने के लिए धरणेन्द्र सात फणों वाले नाग के रूप में प्रगट हुआ। उसने विशाल फण-मण्डप तैयार कर ध्यानस्थ भ0 पार्श्वनाथ को चारो ओर से ढंक लिया। यह पार्श्व प्रभु की पर्यावरण-संरक्षण की विश्वकल्याण कामना से सम्पूरित भावना का प्रतिफल था।
धरणेन्द्र नाग के सात फण-सात प्रकार के प्रदूषणों से रक्षा करने के प्रतीक हैं। सात दिन तक यह प्रदूषण ताण्डव जारी रहा। जब इन्द्र ने रौद्ररूप जल की उत्तंग लहरे देखीं और सम्पूर्ण वन खण्ड को समुद्र में बदलते देखा तब उन्होंने कमठासुर पर 'महायुध व्रज' घुमाकर फेंका जिससे वह असुर भयाक्रान्त हो भागा और फिर कहीं त्राण न पाकर जिनेन्द्र पार्श्व की शरण में आकर नत शीस हुआ। सम्बरासुर की पराजय, पर्यावरण प्रदूषण की सारहीनता की द्योतक है। पार्श्व प्रभु की उपसर्गों पर विजय पर्यावरण-संरक्षण की निर्मल दृष्टि का प्रतीक है। हिसा-अहिंसा के मुकाबले हार जाती है। क्षुद्र सम्बर का हृदय परिवर्तन पर्यावरण की विजय है।
भ0 पार्श्वनाथ का धर्म पूर्ण रूपेण व्यवहार था, जो चातुर्याम 'संवरवाद' के नाम से विश्रुत हुआ । भ0 पार्श्वनाथ ने सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह के साथ अहिंसा का सामंजस्य स्थापित किया। पार्श्वनाथ ने अहिंसा को योगी जनों की चिन्तन से बाहर समाज की ओर उन्मुख कर उसका सामाजीकरण किया और उससे व्यवहारिक स्वरूप प्रदान किया। भ0 पार्श्वनाथ का चातुर्याम के अन्तर्गत सर्व