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________________ अनेकान्त/26 वहां के जैन परशुराम कथा में विश्वास नहीं करते हैं। वैज्ञानिक मत भी जैन सिद्धांत का समर्थन करता है। ____ केरल में समुद्र केवल अपने तट तक ही सीमित नहीं है अपितु वह उसके भूभाग तक घुस आया है और इस प्रकार उसने अनेक विशाल और सुंदर झीलों का निर्माण किया है। मलयालम में इन्हें कयल (Backwaters) कहा जाता है। समुद्र से सीधा सबध जोडने वाली झीलों को अजि (Azhi) कहते हैं। इस प्रकार की एक अजि का एक स्थान कोंडगल्लूर भी है जिसकी चर्चा यथास्थान की जाएगी। उसका सबध जैनधर्म से है। कोचीन से आलप्पी नामक सुंदर नगर को जोड़ने वाली झील ५२ मील लंबी है। इसमे मोटरबोट द्वारा यात्रा का आनंद ही निराला है। इसके पानी का रंग नीला है और इसी के किनारे शैवों का प्रसिद्ध तीर्थ वैक्कम है। प्राचीन काल मे तो व्यापारिक माल लाने-लेजाने के लिए इनका बहुत महत्व था। इन झीलो के किनारे नारियल आदि के पेड इन झीलों के तटों को आकर्षक स्वरूप प्रदान करते है। सावन के महीने में केरल की लगभग सभी जातियो के लोगो द्वारा हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार ओणम् विशेष महत्व रखता है। इस अवसर पर नौका-दौड (वल्लम-कील) दृश्य बडा भनोहारी होता है। ये नौकाएं ३० मीटर तक लबी होती है और इनका एक छोर सांप के फण की तरह ऊंचा उठा हुआ होता है। इन नावों को झूमते-गाते लगभग सौ लोग खेते दिखाई देते है। किनारो पर रंग-बिरंगे परिधानों मे हजारो दर्शक होते हैं और राजसी ढंग से सजे हाथी भी खड़े किए जाते है। इस उत्सव का सबध राजा महाबलि से जोड़ा जाता है। वे यहा के लोकप्रिय शासक थे। इस दिन वे यह देखने आते हैं कि उनकी प्रजा सुखी है या नही | आज की प्रजा भी उन्हे यह विश्वास दिलाती है कि वह सुखी और समृद्ध है। इस सबध मे अगला अध्याय देखिए। राजा महाबलि जैन थे ऐसा लगता है। भारत के दक्षिण-पश्चिम छोर पर राजनीतिक नक्शो में एक अनपढ नोका जैसा दिखने वाला यह केरल राज्य है तो भारतभूमि काही एक भाग कितु उसके पश्चिम मे फैली सह्याद्रि पर्वतमाला ने उसे पूर्वी भाग से मानो विभाजित ही कर दिया है। यह पर्वतश्रेणी पश्चिमी घाट कहलाती है। ये पर्वत ३००० फीट से लेकर ८८४१ फीट तक ऊचे हैं और एक ठोस दीवार जैसा कार्य करते हैं। वे शुष्क या वृक्षहीन नही है, किंतु इमारती लकडी आदि के वनों मे सदा हरे-भरे रहते है। इनके अनेक शिखरों पर बने मंदिरो, गुफाओ आदि का बड़ा महत्व है। इनकी चर्चा यथास्थान की जाएगी। यह पर्वतमाला अखड नहीं है। उसका सबसे बड़ा दर्रा पालघाट दर्रा या
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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