SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त/25 लिए उपयुक्त माना होगा। अनुश्रुति है कि परशुराम ने ६४ ग्राभम् में ब्राह्मणों को केरल में आबाद किया था। अहिच्छत्र से आए इन ब्राह्मणों को भी यहां का सौम्य वातावरण उपयुक्त लगा होगा। कुछ इतिहासकारों का मत है कि केरल के हरित पर्वतों, जंगलों, गुफाओं और मैदानी भूभागों ने भी जैन मुनियों और साधकों को अपनी साधना के लिए केरल में आकर्षित किया होगा। जैन अनुश्रुति है कि ईसा से पूर्व की चौथी शताब्दी में सम्राट चद्रगुप्त मौर्य और आचार्य भद्रबाहू बारह हजार मुनियों के साथ दक्षिण में आए थे। वे दोनों तो श्रवणबेलगोल मे रह गए और शेष मुनि संघ को उन्होंने सुदूर दक्षिण में धर्म प्रचार के लिए भेज दिया। इतिहास-लेखक यह मानते हैं कि तभी से केरल में जैनधर्म का प्रवेश हुआ होगा किंतु अगले अध्याय में यह बताया गया है कि यह धर्म केरल में इससे भी पहले विद्यमान था इस बात की सभावना है। केरल ही नही, उसकी विद्यमानता का सकेत हमें श्रीलंका के इतिहास से भी मिलता है। आवश्यकता है निष्पक्ष विचार की। परशुराम सबंधी परपरा में केरल के जैन विश्वास नही करते हैं। वे जैनधमै के इस सिद्धांत मे आस्था रखते हैं कि इस जगत की रचना करने वाला कोई ईश्वर या तीर्थकर नहीं है। वह तो अनादि और अनत है। उसकी रचना आदि मे तीन तत्व अपना काम करते रहते है। ये है- उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य। वस्तु उत्पन्न होती है, वह नष्ट होती है कितु परिवर्तित रूप में सदा बनी रहती है। बीज से वृक्ष बनता है, वह नष्ट होता है और फिर वृक्ष बन जाता है। जहां समुद्र था, वहा जमीन उभर आती है या पर्वत निकल आते हैं। जगत का यह क्रम चलता रहता है। यह प्रकृति का नियम है, न कि किसी ईश्वर का लीला-क्षेत्र। केरल का कुछ भाग यदि समुद्र ने प्रदान किया है, तो उसने निगल भी लिया है। केरल के इतिहासकार इस बात को जानते हैं कि कन्याकुमारी के आसपास ४० मील क्षेत्र और एक नदी समुद्र की भेट चढ गयी। कन्याकुमारी घाट पर खड़े होकर यदि देखे, तो ज्ञात होगा कि कुछ पर्वत चोटिया समुद्र मे अपनी गर्दन ऊपर निकालने का प्रयत्न कर रही है। वैज्ञानिक यह मानते है कि किसी समय अरब सागर केरल के पर्वतों के मूल तक बहता था किंतु कोई ऐसी भौगोलिक उथल-पुथल हुई कि अरब सागर ने बहत-सी धरती प्रदान कर दी और वह आगे चला गया। यही समुद्र-दत्त भूमि केरल है। भौगोलिक परिवर्तन की ओर भी अनेक घटनाएं केरल के इतिहास में विख्यात हैं। इसी प्रकार का एक स्थान श्रीमूलवासम् था जिसे समुद्र निगल गया। यह स्थान जैनधर्म से संबधित था किंतु उसे गलत साक्ष्य के आधार पर बौद्ध मान लिया गया है। इसलिए केरल के जैनेतर विचारशील जनों की भांति
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy