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________________ अनेकान्त/24 ने इस सौदर्य के एक पक्ष का वर्णन अपनी कविता 'मातूंवदनम्' में बहुत सुंदर रूपक में किया है जिसका भाव इस प्रकार है- माता की वंदना करो, माता की वंदना करो, उपास्यों द्वारा भी उपास्य माता की वंदना करो। समुद्र की लहरें सदा ही सखियों की भांति समुद्र फेन के रूपहले नूपुरों को तुम्हारे चरणों में धारण करती रहती है और बारबार इसकी पुनरावृत्ति करती रहती हैं। केरल पश्चिमी तट के साथ उसकी लगभग पूरी लंबाई तक उसकी धरती के साथ-साथ चलने वाला नीले पानी की शोभा से युक्त अरब सागर भी तो उसे समुद्र फेन से निर्मित विभिन्न गहने धारण कराता रहता है। यह अरब सागर उत्तरी केरल से दक्षिण केरल तक लगभग ५६० किलोमीटर लंबाई में उसका सहयात्री है। यदि आप रेल द्वारा मंगलोर से त्रिवेंद्रम तक की यात्रा करें तो समुद्र आपके साथ-साथ चलता दिखाई देगा। केरल में अनेक आकर्षक समुद्रतट भी है जो पर्यटको को आकर्षित करते है। इस प्रदेश की हरीतिमा को देखकर इसे वन-श्री की विहार-भूमि कहा जा सकता है। समुद्र से केरल के सबध के विषय में एक पौराणिक कथा केरल में प्रचलित है। यह कहानी मलायलम भाषा मे केरलोत्पत्ति तथा संस्कृत में केरल महात्म्य में निबद्ध है। उसके अनुसार विष्णु के अवतार माने जानेवाले परशुराम इक्कीस बार क्षत्रियो का उत्तर भारत मे सहार करने के बाद गोकर्णम् (गोआ प्रदेश) आए। वहां से उन्होंने अपना फरसा अरबसागर में फेंका। उनके और फरसे के बीच जो दूरी थी, उतने क्षेत्र से समुद्र हट गया और गोकर्ण से लेकर कन्याकुमारी तक की भूमि प्रकट हो गई। इस मान्यता के अनुसार केरल का एक नाम भार्गवक्षेत्रम् या परशुराम क्षेत्रम् भी है। ___वैज्ञानिक ढंग से केरल का इतिहास लिखने वाले विद्वान इस पर विश्वास नहीं करते है। इसके सबध मे केरल नामक अग्रेजी पुस्तक के लेखक श्री कृष्ण चैतन्य ने यह मत व्यक्त किया है कि यदि आप में बालसुलभ श्रद्धा है तो आप इस पर विश्वास कर लेंगे और यदि आप प्रौढ व्यक्ति हैं तो इसे आप काव्यमय भाषा में जातीय स्मृति मानेंगे। केरल के प्रसिद्ध इतिहासकार श्रीधर मेनन ने इस पौराणिक कथा पर अपनी संतुलित सम्मति व्यक्त करते हुए कहा है कि १८ वी या १६ वीं सदी में लिखित यह कथा कुछ निहित स्वार्थ वाले व्यक्तियो ने ब्राह्मण की श्रेष्ठता को लोकप्रिय बनाने के लिए किसी समय अपने मन मे गढ ली है। इस बात की संभावना की जा सकती है कि परशुराम ने इस क्षेत्र को अपनी पश्चाताप-तपस्या का क्षेत्र बनाया होगा। उन्हें यहां का शांत, सुंदर प्राकृतिक वातावरण अच्छा लगा होगा। उन्होंने यहां की भूमि को अपने धर्म के प्रचार के
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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