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________________ अनेकान्त/23 १. कल्पवृक्षों की भूमि केरल 0 श्री राजमल जैन सोलहवीं सदी के एक अज्ञातनाम नंपूतिरि कवि ने रचना ‘चद्रोत्सव' में केरल की प्रशंसा में अपने उदगार इस प्रकार प्रकट किए हैं परमृतमोषि चटटु मटटु खण्डु, ड. लेटटु पटविलुमधिक हृधं दक्षिणम भारताख्यम। विलनिलमलरमातिन्न गजन्नुं त्रिलोको चेरू नाटु कुरि पोले चेरमान् नाटु यस्मिन्।। अर्थात् हे परभूतवाणि चारों तरफ आठ और खण्ड हैं। पर उनमें दक्षिण नामक यह खण्ड अधिक हद्य है । लक्ष्मी और सौंदर्य देवी की जन्मभूमि के तीनों लोक के तिलकबिंदु के समान यह हमारा चेरमान नाटु (चेर राजा का) केरल __ उपर्युक्त कवि हमारेदेश की उस भौगोलिक परम्परा की ओर संकेत कर रहा है जिसके अनुसार भरतखण्ड के इस नौवें खण्ड को कुमारी खण्ड या कुमारी द्वीप कहा जाता था । वैदिक धारा के वामनपुराण ने सागर मे घिरे इस कुमारी द्वीप के दक्षिण में आंध्रो को वहां का निवासी बताया है। इस पुराण ने कुमारी द्वीप से भारत का भी आशय लिया है। यह पुराण भारत को गंगा के उद्भव स्थान से लेकर कुमारी अतरीप तक फैला हुआ बताता है। जो भी हो, केरल का कुमारी अंतरीप से अन्यतम संबंध तो है ही। इस पारपरिक नाम की ओर संकेत करने के अतिरिक्त कवि ने चेर देश याकेरल को लक्ष्मी और सौंदर्य देवी की जन्मभूमि भी कहा है। श्रीदेवी या लक्ष्मी की कृपा तो केरल पर सदा ही रही है । अत्यंत प्राचीन काल से ही रोम, यूनान और अरब देशों से अपने मसालों, इलायची, काजू आदि के बदले में केरल स्वर्ण मुद्रा अर्जित करता रहा है और आज भी उसके निवासियों ने अरब आदि देशों मे फैलकर धन अर्जित करने का क्रम जारी रखा है। प्रकृति ने केरल को अनुपम छटा भी प्रदान की है। उसके लंबे समुद्रतट हरे-भरे ऊचे पर्वत झीले, नदियां और हरीतिमा लिए घाटियां, उनमें लहराती नारियल, धान आदि की खेती ने उसे सचमुच ही शस्यश्यामलाया प्रकृति की अनुपम कृति बना दिया है। तभी तो मलयालम के सुप्रसिद्ध कवि वळळतोल
SR No.538048
Book TitleAnekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1995
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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