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केन्द्रीय संग्रहालय गूजरी महल ग्वालियर की तीर्थङ्कर नेमिनाथ की मूर्तियाँ
0 श्री नरेश कुमार पाठक
नेमिनाथ या अरिष्टनेमि नेमि इस अवसपिणी के समवशरण नेमि ने अपना पहला धर्मोपदेश भी दिया। २२वे जिन हैं। द्वारावती के हरिवंशी महाराज समुद्र नेमि को निर्वाण स्थली भी उज्जय। गरि है। नेमिनाथ विजय उनके पिता और शिवा देवी उनकी माता थी। का लाछन शख है, यक्ष-यक्षी गोमेद एवं अम्बिका या शिवा के गर्भकाल मे समुद्र विजय सभी प्रकार के अरिष्टो (कुष्माण्डो) है। से बचे थे तथा गर्भावस्था मे माता ने अरिष्ट चक्र ने मि
केन्द्रीय सग्रहालय गूज महल ग्वालियर मे २२खें का दर्शन किया था, इसी कारण बालक का नाम अरिष्ट
तीर्थदुर नेमिनाथ की दो प्रतिमाये सुरक्षित हैं, जिनमे त
एक पद्मासन मे एव एक कायोत्सर्ग मुद्रा मे निर्मित है, नेमि या नेमि रखा गया। समुद्र विजय के अनुज वसुदेव
सुरक्षित प्रतिमाओ का विवरण इस प्रकार है :की दो पत्नियां रोहिणी और देवकी थी। रोहिणी से
पद्मासन :--यह प्रतिमा पुरातत्त्व सप्ताद के समय बलराम और देवकी से कृष्ण उत्पन्न हुए। इसी प्रकार
संग्रहालय को उपलब्ध हुई थी, इसका प्राप्ति स्थान कृष्ण एवं बलराम नेमि के चचेरे भाई थे। इस सम्बन्ध
ग्वालियर ही है। २२वे तीर्थङ्कर नेमिनाथ पद्मासनस्थ के ही कारण मथुरा, देवगढ, कुम्भ रिया, विमलसही एव
मुद्रा में निहित है। (स. क्र. ६८३) तीर्थकर का दाया लणवसही के मतं अकनो मे नेमि के साथ कृष्ण एव बल
पर आशिक रूप से भग्न है। सिर पर कुन्तलित केश राम भी अंकित हुए। कृष्ण और रुक्मिणी के आग्रह पर
सज्जा, कणंचार, पीछे चत्र के आकार को प्रभावली है। नेमि राजीमती के साथ विवाह के लिए तैयार हुए।
पापर्व में दोनो और एक-ए, पमान मे जिन प्रतिमा विवाह के लिए जाते समय नेमि ने मार्ग मे पिंजरो मे बंद
अंकित है। विनान मे त्रिछत्र, दुभिक विद्याधर युगल, जाल पाशों में बंधे पशुओं को देखा। जब उन्हें यह ज्ञात
अभिषेक करते हा गजो का शिल्पाकन है। पादपीठ पर हुआ कि विवाहोत्सव के अवसर पर दिये जाने वाले भोज
दोनों पाश्र्व में चावरधारी है जिनके मुख भग्न हैं। एक के लिए उन पशुओ का वध किया जाएगा तो उनक हृदय
भूजा मे चावर एक भुजा में कटियावलम्बित है। वे यज्ञोविरक्ति से भर गया। उन्होंने तत्क्षण पशुओ को मुक्त कग
पवीत, केयर, बलय, मेखला पहने हुए है। पादपीठ पर दिया और बिना विवाह किये वापिस लोट पड़े और साथ
नीच सामन मुख किये सिंह, मध्य म चक्र एव एक पूजक दीदीक्षा लेने के निर्णय की भी घोषणा की, नाम के प्रतिमा अजलीहस्त मुद्रा में बैठी हई है। परिकर में गज, निष्क्रमण के समय मानवेन्द्र, देवेन्द्र, बलराम एव कृष्ण सिंह, मकर, व्याल व हार लिए संचिका बडी।। पादउनको शिविका के साथ-साथ चल रहे थे। नेमि ने उज्ज- पीठ के नीचे दायें पर्व में यक्ष गोमेद और बायें पावं में यत पर्वत पर सहस्रार उद्यान मे अशोक वृक्ष के नीचे अपने
यक्षी अम्बिका है, जो दायी मजा मे आम्रलुम्बी एव बायो आभरणो एव वस्त्रो का परित्याग किया और पंच मुष्टि
भुजा से गोद में लिए बच्चे को सहारा दिये हुए है। सफेद मे केशो का लुचन कर दीक्षा ग्रहण को। ५४ दिनो की
बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा का आकार १३५०५ तपस्या के बाद उज्जयत गिरि स्थित रेवतगिरि पर बेतस
४३० से. मी. है। कलात्मक अभिव्यक्ति दृष्टि से ११वी वक्ष के नीचे नेमि को केवल्य प्राप्त हआ। यही देव निर्मित
(शेष पृ० २० पर)