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तीर्थकर शीतलनाथ
२० स्पष्ट रूप से जैन गुफाएं हैं । इन मुफाओं का निर्माण में निर्मित तीर्थर पार्श्वनाथ की एक अति भब्ध पचासन गुप्तकाल---ईसा की पाचवी शताब्दी मे हुआ था। प्रतिमा विराजमान है। मस्तक के ऊपर सप्त फणावलि स्थापत्य कला की दृष्टि से गुफा न० एक को गणना देश है। इसके ऊपर छत्रत्रयी है छत्र के ऊपर दुदुभिवादक व मे प्राप्त सर्वाधिक प्राचीन गुफ ओ में की जाती है। इस शीर्ष पर एक और तीर्थकर प्रतिम का अकन है। दोनो गुका के गर्भगृह मे, पश्चिमी दीवार पर प्रभामण्डल युक्त पाश्वों में विभिन्न वाद्य लिए गन्धर्व है। मध्य मे दोनो तीर्थङ्कर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीणित थी जो ओर दो-दो पनासन लघु आकार जिन प्रतिमाएं है। अधोवर्तमान में काल के प्रभाव, असुरक्षा एव धामिक विद्वेष भाग मे देव माला लिए गज अकित है। वक्ष पर सुन्दर के कारण पूर्णत नष्ट हो चुकी है। प्रतिमा का प्रभा- श्रीवत्स चिन्ह निर्मित है। प्रतिमा के कुछ भाग खण्डित मण्डल मात्र शेष है। इसी के समीप पाषाण निमिा, पाच हो गए है। सर्प फणो से सुशोभित, कायोत्सर्ग मुद्रा मे तीर्थङ्कर सुपा- बाह्य कक्ष के दक्षिण भाग में प्रवेश स्थन के समीप कनाथ को, साढे चार फुट ऊ ची प्रतिमा स्थापित है। शिला पट्ट पर १२ इच चौडा व १० इंच लम्बा एक लेख इसके सिर पर छत्र है व दानी पाश्चों में आकाश में उड़ते अकित है। इसका लखन गुप्त सवन १०६ (ईस्वी सन हु। गन्धर्व हायो मे पुष्पमाला लिए अकित है। अधोभाग ४२६) मे हुआ था। इस लख से ज्ञात होता है कि 'गुप्त में दो पद्मासन व दो खड्गासन मूर्तिया दोनो ओर निमित नरेश कुमार गुप्त के शासन काल में शकर नामक व्यक्ति है। इनके नीचे ललितामय मे तीथङ्कर सुपाश्वनाथ की ने इस गुफा मे सर्पफणो से मणि भगवान पार्श्वनाथ की शासन देवी 'मानवी' अकित है। देवी के दोनो ओर भक्त- विशाल प्रतिमा का निर्माण कराया था। अठ पक्तियो स्त्री पुरुष सिर झुका। खडे है। गुफा का बाह्यमहप चार वाला यह लेख इस प्रकार है :स्तम्भों पर आधारित है ब छन का कार्य एक प्राकृतिक १. नम. सिद्धेभ्यः (1) श्री सयुतानां गणनीयधीनां प्रस्तर शिला करती है।
गुप्तान्वयाना नृप सत्तभाना। गुफा न००० गिरिमाला के उत्तरी छोर पर शिखर
२. राज्ये कुलस्याभिविवर्धमाने षडभियंते वर्षशने. से कुछ नीचे स्थित है। तलहटी से सीढ़ियां चढ़कर यहाँ
शामासे (1) सुकातिकब हुलदिनेश पच में । पहुंचा जाता है। ऊपर एक चट्टानी पठार-सा है। इसके
३. गुहामुखे स्फुटविकटोक्तटामिमा जितद्विषो जिनदाहिने सिरे पर एक द्वार है जिसमे से १४ १५ सोढ़िया
वर पार्श्वमज्ञिका जिनाकृति शमदमवान--- नीचे उतर कर गुफा के अन्तर्भाग मे पहुचते हैं । इस भाग
४. चीकरत (I) आचार्य भद्रान्वय भूषणस्य शिस्यो में दाहिनी और दीवार के मध्य में एक आले नुमा वेदी
ह्यसावार्य कुलोद्गतस्य आचार्ययोगेशमे भगवान शीतलनाथ के सातिशय चरण विराजमान है।
५. म्ममुने. सुतस्तु पद्मावतावश्व तेर्भटस्य (1) चरण के सम: तीर्थङ्कर आदिनाथ की तीन फुट ऊयो
परैरजस्य रिपुन मानिनस्स सधिःएक पद्यामन प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पृष्ठ भाग मे
६. लस्येत्यभिविश्रुतो भवि स्वसज्ञया शंकरनामभामण्डल व वक्ष पर श्रीवत्स का अकन है ।
शदिवो विधानयुक्त यनिमाइस गुफा का बाह्य कक्ष सामने से खुला है। कक्ष
७. गंमास्थितः (1) स उत्तराणा सदृशे कुरुणां को बायी और दाहिनी दीवार पर द्वार के दोनो ओर दो
उदग्दिशादेशवरे प्रसून.-- दो पद्मासन नीर्थङ्कर प्रतिमाएँ, पाषाण शिला पर, भूमि
८. क्षयाय कर्मारिगरणम्य धीमान यदवपुण्य तपाससे लगभग चार फुट ऊपर उत्कीणित है। दोनों ओर सज्ज (1) चमरेन्द्र खडे है। विधमियो द्वार। नष्ट कर दिए जाने से अर्थात्-मिद्धो को नमस्कार हो। वभर मपन्न गणों आज इनका आभाम मात्र शेष है। दक्षिणी ओर एक के समुद्र, गुप्तवश के राजाओ के राय. साके पापण चौकी पर साढ़े चार फुट ऊँची, भूरे रंग के पाषाण कार्तिक मास वृष्ण पवमी दिन, गफा के महत, वितत