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________________ ऊन के देवालय श्री नरेश कुमार पाठक ऊन पश्चिमी निमारण के जिला मुख्यालय खरगोन से क्षरण से मूर्तियां बहुत कुछ अस्पष्ट होती जा रही हैं। १८ कि. मी. जुलवानिया मार्ग पर स्थित है। यह गाव सरसरी दृष्टि से देखने पर ये पकड मे नही आती। यहां लगभग एक सहस्राब्दि पूर्व एक सम्पन्न नगर रहा होगा। के कलाकारों शिल्पी ने लौकिक और धार्मिक दोनो ही जिसके प्रमाण परमार शैली के लगभग एक दर्जन मदिरों जीवनों को पाषाण मे मूर्ति रूप दिया है। एक ओर के अवशेष हैं। यह स्थान जैन स्थापत्य एव मूर्तिकला का उसने तीर्थंकरों उनके यक्ष-पक्षियो का अंकन किय तो प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां प्रसिद्ध सुवर्ण भद्र तथा अन्य दूसरी ओर लोकानुरजन दृश्यों जैसे मूर-सुन्दरियों और तीन सन्तों को नमन कर जिन्होने चलना नदी के तट पर मिथुनो को भी अपनी कल्पना और कला के सहारे स्थित पावागिरि शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था। पाषाणों में सजीव रूप दिया। यह मन्दिर अलकृत स्तम्भों चलना नदी को आधुनिक इतिहासकार ऊन के पास बहने का आकर्षण नमना है तथा वह परमार स्थापत्य कला की वाली नदी को मानते हैं तथा पावागिरि को आधुनिक ऊंचाइयो को छूता दिखाई देता है। कृष्णदेव का मत है कन से समीकृन करते हैं। डा. रामलाल कंवर ने लिखा कि यह मन्दिर कुमारपाल देव चालुक्य शैनी मे निमित है कि ऊन के मन्दिर परमारो की निमितियां हैं तथा किया गया होगा। डा. रामलाल कवर ने कृष्णदेव के मालवा की परमार कालीन भूमिज शैली का शत प्रतिशत मत पर आपत्ति उठाते हुए लिखा है, कि यह चोबारा अनुकरण है। अत: बिना ऊन के मन्दिरों के अध्ययन के डेरा क्रमांक २ शैली और अलकरण मे चौबारा रेरा मालवा की मन्दिर वास्तुकला का अध्ययन अधग ही रह क्रमांक एक के तुल्य बैठना है और इस नाते यह निश्चित जाता है। ऊन मे दो जैन मन्दिर हैं, जिनका विवरण ही परमार शैली का सिद्ध होता । अभिलेखीय आधार निम्नानुसार है : पर चौबारा डेग का निर्माण काल सन् १८५ ईम्वी है। इस मन्दिर की दो प्रतिमा इस समय केन्द्रीय संग्रहालय चौबारा डेरा नं० २ (नहल अवर का डेरा) इन्दौर में है। बडी प्रतिमा शान्तिनाथ को है। वर्तमान मन्दिर का नाम स्थानीय निवासियो में "नहल अवर में इस मन्दिर में कोई प्रतिमा विराजमान नहीं है। कारा" तथा लो प्रिय सम्बोधन मे 'चौवारा डेरा नं० "ग्वालेश्वर मन्दिर" २' कहा जाता है। यह ऊन मे स्थित जैन मन्दिरों मे अत्यन्त उल्लेखनीय मन्दिर है तथा ऊन के सर्वाधिक यह मन्दिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है जिसे सुन्दर स्मारको में से एक है। दुर्भाग्यवश इस मन्दिर का स्थानीय लोग ग्बालेश्वर मन्दिर कहते है। यह नाम शिखर नष्ट हो गया है। इसमे गर्भगृह छोटा अन्तगल सम्भवत: विगत गल मे आधी पानी वाले मौसम में और मण्डप है। मण्डप आठ सम्भों से युक्त है, वर्तमान ग्वाल लोग यहां आश्रय लेते थे। यह मनि:र भी अपनी में जो चौबारा दिखाई देता है। इसकी छतो मे अलकृत पूर्णता मे देखा जा सकता है केवल आमलक और चहापदम बने हैं। द्वार शाखाएं, पत्र लताओ से सुशोभित है। मणि का इममे अभाव है। यह मन्दिर भूमिज शैली का इसके सिरदलों पर तीर्थकर और यक्षी मूर्तियां उत्कीर्ण है। वर्तमान में जैन धर्मावलम्बियों ने ऊपर पुनः निर्माण भित्तियों पर मिथुन मूर्तियो का अकन है। पत्थर के कर आंशिक रूप से आधुनिकता दे दी है। शैली तथा
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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