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________________ अलकरण की दृष्टि से चोबारा डेरा क्रमाक २ के तुल्य नमना है। हा. रामलाल कंवर कृष्णदेव के मत से ही है। ऐसा लगता है कि मन्दिर का द्वार मण्डप बनाया सहमत होते हुए लिखा है कि इस कथन मे बहुत कुछ नही गया था। इसका महामण्डप वर्गाकार है। उसके सार दिखाई देता है क्योकि ग्वालेश्वर के मन्दिर का शिखर तीन द्वार बाहर की ओर खुलते है तथा एक गर्भगृह की बहन कुछ ऊन मे विद्यमान अन्य मन्दिरी के शिखर से ओर जाता है। एक छोटे अन्तराल द्वारा गर्भगृह मण्डप पर्याप्त भिन्नता रखता है। यह सहज भी है, क्यो कि से जुड़ा है। तीनो द्वार के गिरदल पर पद्मासन में नरवमन और उसके उत्तराधिकारी के समय मालवा पर तीर्थकर मूर्तियां अकित है। गर्भगृह मण्डप से लगभग ३ चालुक्य अधिपत्य स्थापित हो गया था। इधर मालवा मोटर नीचे है। इसी कारण गर्भगृह में इस सोढियो के नरवमन और ऊपर चालुक्यराज कुमार पाल दोनो ही मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। गर्भगृह के भीतर तीन जैन धर्म के मबन समर्थक थे। मम्भव है इन मन्दिरो के विशाल तीर्थकर प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान हे जैन निर्माताओं ने दोनो की प्रेरणा ग्रहण करके इन जो क्रमश: सोलहवे तोधार मान्निनाश, मत्तरहवे तीर्थकर मन्दिगे का निर्माण करवाया होगा। इन आधारो पर कुन्धनाथ और अठारहवें तीर्थकर अरहनाथ ही है। इनमे चौबाग डरा क्रमाक २ के बारे में यह कहा जा सकता है कुन्थनाथ जो सर्वाधिक विशाल हैं लगभग ३७५ मीटर कि यह पोबारा डेरा क्रमांक एक समरूप है । यदि उसका है। पादपीठ लेख मे जान होता है कि मन्दिर का निर्माण शिखर बालेश्वर के शिखर के समान रहा हो तो दूसरी (१३६३ विक्रम संवत् ज्येष्ठ ३) सन् १२०६ मे हुआ। और यह भी परमार और चालुक्य शैलियो का सम्मिश्रण इन मूर्तियो के दोनो ओर गर्भगृह के पीछे को दीगर के कहा जा मकता है। साथ-साथ उनके छोटी-छोटी सीढिया है और ये सीढिया -पुरातत्व एव सग्रहालय मूर्तियो का अभिषेक करने के इच्छुक दर्शनार्थयो के उप नलघर सुभाष स्टेडियम के पीछे, योग के लिए है। कृष्णदेव का मत है कि यह मन्दिर परमार और चालुक्य मन्दिर वास्तुकला का मिश्रित रायपुर (म.प्र.) सन्दर्भ-सूची १. कवर रामलाल "प्राचीन मालवा मे मन्दिर वास्तु. ५. इन्दौर स्टेट गजेटियर इन्दौर १९ पृ०७२। कला" दिल्ली १९८४ पृ० १७८ । ६. सक्सेना मपावीर प्रसाद "मध्य भारत की मार्ग२. इन्दौर स्टेट गजेटियर इन्दौर १९३१ पृ०७१-७२। दशिका" ग्वालियर १९५२, पृ० १२४ । ३. वही पृ०७१। ७. इन्दोर स्टेट गजेटियर इन्दौर १९३१ पृ०७१। ४. पश्चिमी निमाड जिला गजेटियर गोपाल १९६७, ८.कंवर रामलाल पूर्वील पृ० १७८-७९ । पृ०५ ०। आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०.३० बाषिक मूल्य : ६) २०, इस अंक का मूल्य : १ रुपया ५० पैसे विद्वान् लेखक अपने विचारो के लिए स्वतन्त्र होते हैं । यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारो से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नहीं लिए जाते। कागन प्राप्ति -श्रीमतो अंगूरो देवो जैन, धर्मपत्नो श्री शान्तीलाल जैन कागजी के सौजन्य से, नई दिल्ली-?
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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