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पुरानी-यादें
१. प्रामाणिकता कहाँ है ?
वसूल हो जाएंगे। मैंने रुपयों का जुगाड़ करके एम० ए.
की डिग्री ले ली और मुझे आफिस मे काम मिल गया। वे बोले-मुझे वे दिन याद आते हैं जब मैं एक बड़े
होनहार की बात है कि एक दिन मेरा आफिस के दफ्तर में कार्यरत था। अच्छा पैसा मिलता था। रहने
एक माथी से झगड़ा हो गया और उसने किसी तरह मेरी को बंगला, कार, नौकर-चाकर सम्बन्धी सभी सुविधाएँ
जालो डिग्री की बात कहीं न कहीं से जान ली और मेरी प्राप्त थीं। सैकड़ो लोग सुबह से शाम और रात तक भी
शिकायत कर दी। मैं जांच के लिए निलंबित कर दिया मेरे मुख की ओर देखते थे कि कब मेरे मुंह से क्या निकले
गया। मुकद्दमा चला और आठ वर्ष के कार्यकाल में जो और वे तदनुरूप कार्य करे। कोई ऐसा पल न जाता था
कुछ जोड़ा था वह सब खर्च हो गया। पर, मैं निर्दोष न जब कोई न कोई मेरी ताबेदारी में खड़ा न रहता हो।
छट सका । नौकरी भी गई और जुर्माना भी भरना पड़ा। पर, क्या कहू ? आज स्थिति ऐसी है कि बेकार बैठा है। रहने का ठिकाना नही। नौकर-चाकर को क्या कहूं? मैं मैंने कहा-आपने जाली सागैफिकेट क्यों बनवाया? खद ही मेरा नौकर हूं। मैं कही नौकरी करना चाहता हूं क्या आप नही जानते कि वही सार्टीफिकेट काम देता है,
कोई नौकरी नहीं देता। कई टायम तो भूखो रह केवल जो किसी स्वीकृत और प्रामाणिक बोर्ड या विश्वविद्यालय पानी के दो घट पोकर खाली पेट ही सोता है।
से मिला हो-किसी ऐसे व्यक्ति, संस्था या समाज मे मिला प्रमाण-पत्र जाली होता है जिसे उतनी योग्यता न हो और
जो प्रमाण-पत्र देने के लिए अधिकृत न हो। उसका दिया का क्या हुआ?
मार्टीफिकेट तो बोगस और झूठा ही होगा। बोले-क्या कहं ? बचपन से मेरा खेल-कूद मे मन रहा।
वे बोले-वक्त की बात है, होनी ही ऐसी थी। पर वालों के बारम्बार कहने पर भी मैं पढ़ने से जी चुराता
वरना कई लोग तो आज भी अयोग्य और अनधिकृत लोगों रहा और जब बड़ा हुआ तब देखा कि मेरे साथी यूनि
से उपाधियाँ, अभिनन्दनादि ले रहे हैं वे सम्मानित भी वर्सिटियों की डिग्री लेकर अच्छे-अच्छे पदों पर लगे चन की वशी बजा रहे हैं। मुझे अपने पर बस तरस आया। हो रहे हैं और उनकी तूती भी बोल रही है। मैंने सोचा, यदि मेरे पास डिग्री होती तो मैं भी कही न मैंने कहा- आपकी दृष्टि से आपका कहना तो ठीक कही कोई आफीसर बन गया होता। बस, इमी सोच में है पर, इसकी क्या गारण्टी है कि उनकी प्रामाणिकता भी काफी दिनो रहा कि एक दिन मेरे किसी जानकार ने मुझे आपकी तरह किसी न किसी दिन समाप्त न होगी? फिर, कहा कि तू डिग्री ले ले। मैंने कहा-कहा से कैस ले लू? ऐसे उपक्रमो की प्रामाणिकता है ही कहां? सभी लोग तो अब तो उन भी बडी हो गई है। उसने मुझे बताया कि ऐसे उपक्रमों के वैसे समर्थक नहीं होते जसे वे विश्वविद्यापडोस के महल्ले मे एक सम्था गुप्त रूप मे डिग्रियां देती लयो द्वारा प्रदत्त उपाधियो के पोषक होते हैं। माप है। तेरे कुछ पैसे जरूर लगेंगे, पर तेरा काम हो जायगा। निश्चय समझिए कि प्रामाणिक उपाधि सभी स्थानों पर, बस, क्या था? मरता क्या न करता-मैं उस संस्था में सभी की दृष्टि में प्रामाणिक ही रहेगी--एक भी व्यक्ति पहचा और जैसे-तैम दो हजार रुपयो में सौदा बन गया। ऐसा नहीं होगा जो किसी सरकार द्वारा दी गई मैंने सोचा इतने रुपये तो दो मास की तनख्वाह हैं, बस उपाधि को नाली बताने की हिम्मत कर सके। जबकि