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________________ प्राचीन भारतको प्रसिद्ध नगरी---अहिच्छत्र अहिच्छत्रा के पुराने किले के अवशेष हैं जो आजकल था। यह यक्ष प्रतिमा राज्य संग्रहालय लखनऊ में सुरक्षित आदिकोट के नाम से प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के विषय मे है। जनश्रुति है कि उसे आदि नाम राजा ने बनवाया था। कनिंघम अहिच्छत्र नाम ही ठीक मानते हैं क्योंकि कहा जाता है कि यह राजा अहीर था। एक दिन वह सर्प द्वारा फणो से किसी के सिर की रक्षा किये जाने की किले की भूमि पर सोया हुआ था और उसके उपर एक मान्यता जैन, बौद्ध एवं ब्राह्मण अनुश्रुतियों से स्पष्ट है। नाग ने छाया कर दी थी। पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने ऐतिहासिक काल में अहिच्छत्रा नाम अधिक प्रचलित हो उसे इस प्रकार की अवस्था मे देखकर भविष्यवाणी की गया । अहिच्छत्र जिस जनपद की राजधानी थी, उसका कि वह किसी दिन उस प्रदेश का राजा बनेगा। कहते हैं नाम महाभारत मे एक स्थान पर अहिच्छत्र विषय भी कि वह भविष्यवाणी सच निकली, टालमी ने इस स्थान मिलता हैको आदि राजा कहा है। इसका अर्थ यह है कि आदि अहिच्छत्रं च विषयं द्रोणः समाभिपद्यत । सम्बन्धी कथा ई. पूर्व के प्रारम्भ जितनी पुरानी हैं। एवं राजन्नहिच्छत्रा पुरी जनपदा युता ॥ इस कोट के वर्तमान घेरे की लम्बाई करीब ३ मील है। (आदिपर्व १३८/७६) कोट के चारो तरफ एक चौड़ी खाई (परिखा) थी, विदेशी यात्रियों की दृष्टि में अहिच्छवा जिसमें पानी भरा रहता था। यह खाई अब भी दिखाई अहिच्छत्रा के गुण गौरव की गाथा सुनकर अनेक पडती है। कोट के अतिरिक्त अनेक पुराने टीले अब भी विदेशी यात्रियों ने इसका परिभ्रमण किया तथा अनेकों रामनगर के आस-पास फैले हुए है। ये टीले प्राचीन ने इसके विषय में अपने यात्रा संस्मरण लिखे। यवान. स्तों, मन्दिरो तथा अन्य इमारतो के सूचक हैं। च्याङ् ने यहां लोगो को शैक्षिक प्रवृत्ति का तथा ईमानदार परवर्ती साहित्य तथा अभिलेखो में अहिच्छत्रा के कई पाया। उसके अनुसार बौद्धों की हीनयान शाखा के एक नाम मिलते हैं। महाभारत मे छत्रवती और अहिक्षेत्र, हजार से अधिक सम्मतीय भिक्षु अहिच्छत्रा में रहते थे। पर नाम मिलते है। हरिवंश पुराण तथा पाणिनी को उनके दस से अधिक बिहार थे। देव मन्दिरों की संख्या मायायो मे 'अहिक्षेत्र' अहिच्छत्र आदि रूप पाये जाते थी तथा पाशुपत शंव संख्या मे तीन सौ से अधिक थे। है। रामनगर तथा उसके आस-पास खुदाई से प्राप्त कई यूवानच्यांङः के अनुसार इस देश की परिधि ३०० ली अभिलेखों मे अधिच्छत्र नाम आया है और इसी रूप मे थी तथा इसकी राजधानी की परिघि १७ या १६ ली यह शब्द इलाहाबाद जिले के पभोसा नामक स्थान की थी। गुफा में भी खुदा है। पभोसा का पहला लेख इस प्रकार हृनयांग (१३५ ई०) ने इसका नाम अहिच्छत्र (अहि चिता लो) लिखा है । ह्वेनसांग के कथनानुसार यहां एक अधिछत्र राजो शोनकायन पुत्रस्य बंगापालस्य । यह नागहृद था, जिसके समीप बुद्ध ने नाग राजा को सात दिन लेख शंग कालीन (ई०पू०२री शती) का है। अहिच्छत्रा तक उपदेश दिया था। इस स्थान पर अशोक ने एक स्तूप की खदाई में गुप्तकालीन मिट्टी की एक सुन्दर मुहर बनवा कर चिह्नित किया था। इस समय जो एक स्तूप निकली थी जिसमें श्री अहिच्छत्रा मुक्तो कुमारमात्याधि- अवशिष्ट है, उसे छत्र कहा जाता है। इससे यह अनुमान करणस्य (अहिच्छत्रा संभाग के कुमार मात्य के कार्यालय होता है कि यह उस पुराकथा से सम्बन्धित है, जिसमें की मोहर) लेख लिखा है। १९५१ के अन्त मे प्रो० कहा गया है कि बुद्ध के धर्म में दीक्षित होने के बाद वहां कृष्णदत्त बाजपेयी को रामनगर से एक अभिलिखित यक्ष के नाग राजा ने बुद्ध के ऊपर फण फैलाया। इसी प्रकार प्रतिमा प्राण्त हुई। इस पर दूसरी शती का लेख खुदा है, की कहानी बोध गया के विषय में कही जाती है, जहां जिसमें अहिछत्रा नाम ही मिलता है। इन दोनों पिछले नागराज मुलिन्द ने फण फलाकर बुद्ध के ऊपर पड़ती अभिलेखों से स्पष्ट है कि नगर का शुद्ध नाम अहिच्छत्रा हई वर्षा के पानी की बौछारों को दूर किया था। मार
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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