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५ कि.१
अनेकान्त
ने इन्हें बुद्ध के ऊपर छोड़ा था। इस प्रकार अहिच्छत्रा से ह्वेनसांग ने इस स्थान के किसी राजा का उल्लेख उक्त कहानी का सम्बन्ध सारपूर्ण नहीं ठहरा है। कैन- नहीं किया है, क्योंकि उसे पता था कि यह राजा हर्ष के सांग के अनुसार अहिच्छत्र जिस देश में था, उस देश का सीधे नियन्त्रण में एक मुक्ति था। इस समय इस क्षेत्र में शेरा ३००.ली (लगभग ९६० किलोमीटर) से अधिक बौद्ध धर्म का ह्रास होने लगा था तथा शैव सम्प्रदाय था। अहिच्छत्र नगरी का घेरा १७ या १८ ली अर्थात् ३ समद्धि की ओर था तथा तेजी से उन्नति कर रहा था, मोरया तथा प्राकृतिक प्रवरोधों से इसकी रक्षा की गई जब कि जैनधर्म की अपनी स्थिति सदढ थी। थी। यहाँ १२ मठ थे, जहां १००० बौद्ध भिक्षु रहते थे।
टालमी (ण० ई.) ने कनागोरा (कान्यकुब्ज) के ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी १ मन्दिर थे।
साथ सम्भलक (सम्भल), अदिसत (अहिच्छत्रा) तथा ___ यहां ईश्वरदेव या शिव के ३०० उपासक थे। ये
सागल नगरियों का उल्लेख अपनी कृति कलाडियस के अपने, अग पर राख लगाये रहते थे। नागहृद् के समीप
भूगोल मे किया है। वर्ती स्तूप के निकट चार छोटे बोट स्तूप थे। ये चार
पतंजलि का उल्लेख पूर्ववर्ती बुद्धों के ठहरने अथवा भ्रमण करने के स्थान पर बने थे। प्राचीन अहिच्छत्रा का आकार तथा उसकी
यदिच्छता का आकार तथा उसकी प्रसिद्ध वैयाकरण पतंजलि (लगभग १५० ई. ) विशिष्ट स्थिति हुनसांग के वर्णन के अनुसार ठीक-ठीक ने अहिच्छत्र में जन्मी स्त्री को अहिच्छत्री तथा कान्यकुब्ज मिलती है। याजकल जो कोट की दीवारें स्थित हैं व मे जन्मी स्त्री को कान्यकुब्जी कहा है। ३.५ मील के घेरे मे है। घेरे को त्रिभुजाकार वरिणत
अभिलेखों में अहिच्छता किया जा सकता है। पश्चिमी किनारा ५६०० फीट
पभोसा गुहालेख से हमे ज्ञात होता है कि अहिछत्र लम्बा है उत्तरी ६४०० फीट तथा दक्षिणी पूर्वी किनारा
पर सोनकायनि राज्य करता था। समुद्रगुप्त के प्रयाग ७४०० फीट है। किले की अवस्थिति रामगगा तथा
स्तम्भ लेख में अच्युत नामक एक शक्तिशाली राजा का गौधन नदी के मध्य है। इन दोनों को पार करना कठिन
उल्लेख है, जिसकी मुद्राय अहिच्छत्र से प्राप्त हुई है। है, क्योंकि पहली बहुत अधिक रेतीली है तथा दूसरी मे
पभोसा गुहा अभिलेखो में यह तथ्य उल्लिखित है कि बड़े-बड़े खरे हैं। उत्तर और पूर्व में दोनों प्रायः अगम्य
कौशाम्बी के समीप स्थित पभोसा की दो गुफायें अहिच्छत्र प्रिया नाला से विभाजित हैं। प्रिया नाला मे दुर्गम खड
देश पर नरेश आषाढसेन ने काश्यपीय अहितों को समर्पित 1. किनारा बहुत ढलावदार है तथा बहुत सारे गहरे छोटे- की थी। इन गुहाओ मे से एक में दानी नरेश आषाढ़सेन छोटे तालाब हैं। पहियेदार वाहनों का इस पर चलना को राजा बहस्पति मित्र का मामा बतलाया गया। दूसरे असम्भवस कारण बरेली को जाने वाला रास्ता, जो अभिलेख में राजाओं की चार पीढ़ियों का उल्लेख है, कि मील है. बैलगाड़ी से २६ मील से कम नही है। जिसका प्रारम्भ शोनकायन से होता है"। भोसा के अन्य पथा मे लखनौर से उत्तर दक्षिण का रास्ता अगम्य है। शिलालेख में उदाक के समय अहिच्छता का नाम उल्लिलखनौर कटेहरिया राजपूत की प्राचीन राजधानी थी। खित हुआ है। शिलालेख की लिपि (प्रथम शताब्दी ई. सयकार द्वेनसांग का यह वर्णन कि यह स्थान प्राकृतिक पू.की) ब्राह्मी है। इलाहाबाद स्तम्भ लेख में आर्यावर्त अबरोधों से सुरक्षित है, सार्थक है । अहिच्छत्रा आंवला से के दूसरे राजाओं के साथ अच्युत का निर्देश है। जना की और केवल ७ मील, किन्तु मार्ग का आधा अहिच्छत्रा मे ब्राह्मी लिपि में मिश्रित संस्कृत में भाधन नदी के खड़ों के कारण विभाजित है । आवला लिखा गया दो पंक्तियों का अभिलेख प्राप्त हबा है।
जनर के जंगलों के ही कारण कटेहरिया राजपूतों ने जिसका काल दूसरी शताब्दी ई. निर्धारित किया गया फीरोज तुगलक के अधीन मुसलमानो को आने से रोक है । अहिच्छत्रा के फरागुल विहार में धर्मघोष के दान का दिया था।
उल्लेख यहां प्राप्त हुआ है। यह चतुर्भज के बाकार की