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________________ प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नगरी-अहिच्छत्र 0 डॉ. रमेश चन्द्र जैन माम और स्थिति : परगना तथा आंवला तहसील के ग्राम रामनगर से बाहर अहिच्छत्र या अहिच्छत्रा उत्तर पचाल को राजधानी है। उत्तर पंचाल का राज्य साहित्य मे अहिच्छत्र विजय थी। भागीरथी नदी उत्तरएवं दक्षिण पचालके मध्य विभा- के नाम से निर्दिष्ट किया जाता रहा। कुछ शताब्दियो जक रेखा थी। वैदिक ग्रन्थों मे इस देश का एक पूर्वी एवं पूर्व मुसलमानों के प्रादुर्भाव से वह क्षेत्र जो गगा के उत्तर पश्चिमी भाग बताया गया है। पतंजलि ने अपने महा. तथा अवध के पश्चिम में था कठेर नाम से कहलाया। भाष्य में इसका उल्लेख किया है। योगिनी तन्त्र में यह नाम अठारहवीं शताब्दी के मध्य तक चलता रहा इसका वर्णन आता है। दिव्यावदान के अनुसार उत्तर जब तक कि इसका पुराना नाम रुहेलखंड नही हो गया। पंचाल की राजधानी हस्तिनापुर थी किन्तु कुम्भकार प्राचीनकाल में यहां वे लोग रहते थे तो जिनके वंशज जातक मे कम्पिलापुर को इसकी राजधानी बतलाया आज आदिवासिया के रूप में रहत है। य जातिमाहगया है। भील, बिहार, भुइहार, भार, अहार तथा अहीर । स्थानीय अहिच्छत्र टालेमी के यूनानी अदिसन के अधिक परम्परायें अहिच्छत्र को अनार्य नागों से जोड़ती हैं। समीप है । इसे छत्रपती भी कहा जाता था। आषाढसेन के बलाई खेडा तथा परसुवा कोट का सम्बन्ध असुर राजा पभोसा गुहालेख मे जो लगभग ई. सन के आरम्भ का है. बलि से था। अहिच्छत्रा के पास एक ग्राम 'सोनसबा' है अधिछत्र नाम प्राप्त होता है। अर्जुन ने युद्ध में दुपद को जो स्याणश्रवा यक्ष की नगरी थी। इस यक्ष ने राजकन्या पराजित करने के पश्चात् अहिच्छा और कांपिल्य नगरों शिखण्डिनी को पुंस्त्व प्रदान किया था। यहां से कुछ पूर्व को द्रोण को दे दिया था। दोनो नगरों को स्वीकार कर 'पलावन' गांव है यह प्रसिद्ध 'उत्पलावन था यहां विश्वाविजेताओं में श्रेष्ठ द्रोण ने काम्पित्य को पूनः द्रपद को मित्र कोशिक ने शक के साथ यज्ञ किया था। वापस लौटा दिया था। वैदिक साहित्य मे अहिच्छत्र का प्राचीन नाम विविध तीर्थकल्प के अनुसार इसका प्राचीन नाम परिचका मिलता है सम्भवता उस समय इस नगर का संख्यावती था। यह कुरुजांगल देश की राजधानी थी। आकार चक्राकार या गोल रहा हो ऐसा प्रतीत होता है भगवान पार्श्वनाथ इस नगर मे परिभ्रमण करते थे। कि कालान्तर मे परिचका के स्थान पर इस नगर का पार्श्वनाथ के पूर्व जन्म के शत्रु कमठासुर ने सम्पूर्ण पृथ्वो नाम अहिच्छत्रा प्रसिद्ध हो गया जिस जनपद या राज्य को आप्लावित करने वाली अबाध वर्षा करायी थी। की यह राजधानी थी, उसके प्राचीन नाम पचाल और पाश्वनाथ आकण्ठ जल मे डूब गये थे। उसकी रक्षा करने अहिच्छत्रा दोनो मिलते हैं। अहिच्छत्रा नगर के ध्वसाव. के लिए स्थानीय नागराज अपनी पत्नियों के साथ वहां शेष उत्तर प्रदेश के बरेली में रामनगर गांव के समीप आ गये। उनके सिर पर अपना सहस्र फण फैलाया और टीलो के रूप में विखरे पड़े है वहां तक पहुंचने के लिए उनके शरीर को चारो ओर कुण्डली मारकर लपेट लिया। बरेली से आंवला नामक रेलवे स्टेशन जाना होता है। इसीलिए इस नगर का नाम अहिच्छत्र पड़ा। मित्र पडा। आंवला से कच्ची सड़क के रास्ते लगभग १० मील उत्तर अहिच्छत्रा प्राचीन भारत की एक प्रमुख नगरी थी। अहिच्छत्रा है। इस पुरानी नगरी मे ढह कई मील के इसकी पहिचान उन खंडहरो से हुई है जो कि सिरोली विस्तार में फैले हैं। रामनगर से लगभग डेढ़ मील आगे
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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