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परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकसनविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥
वर्ष ४६ किरण १
वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वीर-निर्वाण संवत् २५१८, वि० सं० २०५०
जनवरी-मार्च
१९६३
ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावं? ऐसा मोही क्यों न अधोगति जावे,
जाको जिनवाणो न सुहावै ॥ वीतराग सो देव छोड़ कर, देव-कुवेव मनावे । कल्पलता, दयालता तजि, हिंसा इन्द्रासन बावं ॥ऐसा०॥ रचे न गुरु निर्ग्रन्थ भेष बहु, परिग्रही गुरु भाव। पर-धन पर-तिय को अभिलाष, अशन अशोधित खावै ॥ऐसा०॥ पर को विभव देख दुख होई, पर दुख हरख लहा। धर्म हेतु एक वाम न खरच, उपवन लक्ष बहावै ॥ऐसा॥ ज्यों गृह में संचे बहु अंघ, त्यों बन हू में उपजावै । अम्बर त्याग कहाय दिगम्बर, बाघम्बर तन छावै ॥ऐसा०॥ भारंभ तज शठ यंत्र-मंत्र करि जमपं पूज्य कहा। धाम-वाम तज दासी राखे, बाहर मढ़ो बनावै ॥ऐसा०॥