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________________ १२, बर्ष ४१, कि.. पृष्ठ पंक्ति ६१ ४३१ ४४० ४. २४ अशुद्ध उदय किस गुणस्थान से किस गुणस्थान तक होता है। १-२३४ स्वोदय परोदयबन्धी स्वाक्ष्य बन्धी परधाद स्थानगदित्रय क्योकि अप्रशस्ता के आदि लेक ३६ अवक्तव्य बन्ध के सव सव [१+२] ३ भग है चरम समय तक पुरुष वद का बन्धक है गुणस्थान उदय विकल्प अनिवृति करण सुक्ष्मसाम्पराध गुणस्थान संयम प्रमत्त संयम २ विहायोगति, स्थिर, सुभग नामकर्म के ये चार बन्ध स्थान होते हैं। चार मनोयोगियों व चार वचनयोगियों में उक्त ८बन्ध स्थान ५१० ५२८ ሃ उदय किस गुणस्थान से किस गुणस्थान . तक होता है। १-४ स्वोदय परोदय बन्धी स्वोदय बन्धी परघात स्त्यानगृत्रिय क्योंकि अप्रशस्तता के आदि लेकर ३६ अवक्तव्य बन्ध के सर्व सर्व [१+२] ३ भग हैं चरम समय तक पुरुषवेद का बन्धक है। गुणस्थान उदय विकल्प अनिवत्तिकरण १ सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान संयम प्रमत्तसंयम ३ विहायोगति, स्थिर, शुभ सुभग नामकर्म के ये पांच वन्ध स्थान होते हैं। चारों मनोयोगियों मे व चार वचनयोगियों एवं औदारिक काय योगियों में उक्त ८ बन्ध स्थान आहारक द्विक का बन्ध प्रमत्तगुणस्थान मे नही होता है। देव एकेन्द्रिय पर्याप्ति सहित २५ प्रकृति का तथा याताप या उद्योत के साथ पर्याप्त तिर्यञ्च सहित २६ प्रकृति का कापोत लेपाका मनुष्य प्रकृति संयुक्त ३० प्रकृति का स्थान एवं अयोगी गुणस्थान को, अयोगी सिट पद........ चालना से आठ आठ पर्याप्त दीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय स्थान के शुद्ध ११, २५ ये पंक्तियां दो बार मुदित हो गई हैं। आहारक द्विक प्रमत्त गुणस्थान में होता है ५४० देव एकेन्द्रिय सहित २६ प्रकृति का २७ १४३ ५४५ कपोत लेश्या का मनुष्य प्रकृति संयुक्त स्थान का एव २१-२२ ५६० २४ अयोगी गुणस्थान को, अयोगी को अयोगी सिद्ध पद चालना आठ आठ पर्याप्त द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय स्थान के ११२५ अथवा उपर्युक्त २६ प्रवृति में सुस्व दुःस्वर मे से कोई एक प्रकृति मिलाने पर.. ... ५८० १६.२१ उच्छवास पर्याप्ति में उदय योग्य ३० प्रकृति स्थान है। (क्रमश:)
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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