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जगतगुरु कब निज आतम ध्याऊँ ॥टेक॥
नग्न दिगम्बर मुद्रा धरिके,
कब निज आलम ध्याऊँ। ऐसी लब्धि होय कब मोकू,
जो निज वांछित पाऊँ ॥जगतगुरु०॥ कब गृहत्याग होऊँ वनवासी,
परम पुरुष लो लाऊँ । रहूं अडोल जोड़ पद्मासन,
कर्म कलंक खपाऊं ॥जगतगुरु०॥ केवलज्ञान प्रकट करि अपनो,
लोकालोक लखाऊं । जन्म-जरा-दुख देत जलांजलि,
हो कब सिद्ध कहाऊ जगतगुरु०॥ सुख अनन्त विलसू तिहि थानक,
काल अनन्त गमाऊं। 'मानसिंह' महिमा निज प्रगट,
बहुरि न भव में पाऊं ॥जगतगुरु०॥
कागज प्राप्ति :-श्रीमती अंगूरो देवी जैन, धर्मपत्नी श्री शान्तिलाल जैन कागजी, नई दिल्ली-२के सौजन्य से