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________________ गोम्मटसार कर्मकाण्ड का शुद्धिपत्र [ब० रतनचंब मुख्तार द्वारा सम्पादित तथा शिवसागर ग्रंथमाला से प्रकाशित] संशोधिका-१०५ आर्यिकारल विशालमति माता जी [मा० क. विवेकसागर शिष्या] पंक्ति 59 ___ १६ ६-१३ • १४ -जवाहरलाल मोतीलाल जैन, मोण्डर अशुद्ध प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्याना- प्रत्याख्यानावरण माया, प्रत्याख्यानावरण क्रोध. वरण मान प्रत्यारानावरण मान । कार्माण बन्धन कार्माण शरीर बन्धन संयोग से शरीर बन्धन संयोग से कार्माण शरीर बन्धन १६ कम करने उदयापेक्षा १६ कम करने से उदयापेक्षा तव्यतिरिक्त सद्व्यतिरिक्त कानो कर्म का नोकर्म पौदूगलिक पोद्गलिक सद्भाव सद्भाव द्वितीय-षष्ठम् प्रथम-षष्ठ अजनाराच-अर्धनाराच वजनाराच, नाराष, अर्घनाराच बन्ध बन्ध १०० ६६ १० २२ १०७ १०८ इस गुणस्थान मे महीं होता है कल्पावासिनी बन्ध योग्य प्रकृति बन्ध कारण भी अन्तः कोड़ाकोड़ी प्रमाण अन्तः कोड़ाकोड़ी प्रमाण एक आवलीक अबाधा अनुकृष्ट अनादेय बैंक्रियक विका ७२ इस गुणस्थान में होता है। कल्पवासिनी बन्ध योग्य प्रकृति ६५ बन्ध के भी कारण अन्तः कोडाकोड़ो सागर प्रमाण अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण एक आवलीको भाबाधा अनुत्कृष्ट आदेय वैकियिक हिक का १०५ १२१ १२५ ૨૪ १५
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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