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अष्टपाहुड की प्राचीन टीकाएँ
डॉ. महेन्द्र कुमार जैन 'मनुज
पाहड ग्रथ आचार्य कुन्दकुन्द की प्रमुख रचनाएं हैं। वननिका ये दो टीकाएँ प्रकाशित हुई हैं। अनुसंधान के हंपण, मृत्त, चन्ति, बोह, भाव, मोक्ख, लिंग और गोल क्रम में विभिन्न शास्त्र भण्डारों, प्रकाशित-अप्रकाशित इन आठ पाहुडो को 'भष्टप्रामृत' तथा आदि के छह पाहुडों ग्रन्य सूचिशे आदि के सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि अष्टको 'षटप्रामत' नाम दिया गया। इन्ही नामों से ये प्रका- पाहुड पर कन्नड, संस्कृत, ढूढारी, हिन्दी आदि भाषाओं शित हुए हैं।
मे विभिन्न आचार्यों तथा विद्वानों ने अनेक टीकाए तथा ___ अष्टपाहुड के अब तक प्रकाशित सस्करणा के सपादन पद्यानुवाद किए है। अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार मे प्रचीन पांडुलिपियों का उपयोग प्राय. नगण्य हआ है। पाहुडो पर तीन प्राकृत टीकाएँ, चार सस्कृत टीकार्य, चार इसलिए प्रायः प्रत्येक सम्करणके मूल प्रात पाठ मे भिन्नता हिन्दी-टूढारी टीकाए और पद्यानुवाद किए गये है। कन्नड़ है । पाठ-भिन्नता के कारण अष्टपाहुड के विशिट अध्य. टीकाए बाल बन्द, कनक वन्द और एक अज्ञात टीकाकार यन में काफी अमुविधाएँ हुई हैं। इन्ही को ध्यान में रखने की है। संस्कृत टीकाए प्रभाचन्द्र महारडित प्रभाचन्द्र हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिसर्च एशोसिएट श्रुतमागर सूरि और एक अज्ञात विद्वान् को है। ढढारीयोजना के अन्तर्गन सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के हिन्दी टोकाए और पद्यानुवाद भूधर, देवीसिंह छाबडा, प्राकृत एव जैनागम विभाग मे मैने अष्टपाड के सम्पदन प० जयचन्द छावड़ा और एक अज्ञात रचयिता द्वारा किये का कार्य आरम्भ किया है। अभी तक के अनुसन्धान से मुझे जाने के उल्लेख हैं। अष्टपाहड की २६८ पाडुलिपिमो की जानकारी मिली है। डा. ज्योतिप्रसाद जैन की सूचना के अनुसार १३वी
देश-विदेश के विभिन्न शास्त्र भंडारों मे अष्टपाहुड शताब्दी मे बालचन्द ने मोक्षपाहड पर कन्नड टी लिखी की दर्शनप्राभूत (दसणपाहुड), चारित्रप्रामन (चरित्र है। इसके अतिरिक्त इन्होने आचार्य कुन्दकुन्द के समयपाहुड), भावप्राभूत, भावनाप्राभूत (भावपाहुड), मोक्ष सार, प्रवचनमार, पञ्चास्तिकाय और नियमसार पर प्राभूत (मोक्ख गहुड), लिंगपाहुड, सीलपाड, षट्वाभृत कन्नड टीकाए लिखी हैं। तत्त्वार्थसूत्र, द्रव्यसंग्रह और (षट्पाहुड और अष्टप्राभूत आदि नामो से पांडलिपियाँ परमात्मप्रकाश पर भी इनके द्वारा कन्नड टीकाए रचे सुरक्षित हैं।
जाा को सूचनायें बाप्त हैं।' मोक्षपाहुड पर बालचन्दकृत आचार्य अमत चन्द कुन्दकुन्दकृत ग्रन्थो के आद्य एव कन्नड टीका की एक ताडपत्रीय पांडुलिपि के जैन मठ प्रमुख टीकाकार है। दूसरे प्रमुख टीकाकार आचार्य मूडविद्री में उपलब्ध होने की सूचना है। इसकी पत्र सख्या जयसेन है। उक्त दोनो आचार्यो की समय हड, प्रवचन- १२ व ग्रन्यांक ७५% है।' मोक्षपाहुड पर ही १३वी सार और पञ्चान्तिकाय पर टीकाएं उपलब्ध हैं। किन्तु शताब्दी मे कनकचन्द ने कन्नड टीका लिखी है। इनके कुन्दकुन्द की नियमसार और अष्टपाड जैसी महत्वपूण विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं होती। रचनामों पर हन प्राचार्यों की टीकाएँ प्राप्त न होना आरा के जैन सिद्धान्त भवन मे पाहों की कन्नड विचारणीय है।
भाषा मे तीन ताड़पत्रीय पांडुलिपिया विद्यमान हैं। दो षट्पाहर पर श्रुतसागर सूरि की संस्कृत टीका तथा मोक्षपाहुड एव एक षट्वाभृत नाम से है। मोक्षप्राभूत के अष्टपाड पर पडित जयचन्द छावड़ा की ढूढारी भाषा पत्र १७ और १५ तथा प्रन्यांक १०२८ और १०२६ है।