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जयसेन जैसे प्राकृतज्ञ आचार्यों की अवमानना की है । हम यह मानने के लिए कदापि तैयार नहीं कि हमारे आचार्यों ने भूल की और गलत शब्द रूपों का चयन किया । देखें आचार्यों द्वारा गृहीत वे कुछ शब्द रूप जिन्हें संशोधक ने बदल दिया है।
समयसार (आचार्य जयसेन टीका) गाथा 27, 36, 37, 73, 199 में इक्क व इक्को । गाथा 17, 35. 373 में ऊण प्रत्ययान्त । गाथा 5 चुक्किज्ज । गाथा 23, 24, 25, 45, 2, 101 , 172, 196, 1999 में पुग्गल । गाथा 33 में हविज्ज । गाथा 300 में भणिज्ज । गाथा 44, 68, 103, 249 में कह । गाथा 2, 142 में जाण । इसके अतिरिक्त यदि समयसार के विभिन्न प्रकाशनों का देखा जाय तो उनमें - __ चुक्किज शब्द रूप निम्न प्रकाशनों में उपलब्ध हैं - सोनगढ़ 1940, कोल्हापुर 1908. जे. एल. जैनी 193), अजमेर 1969, अहिंसा मंदिर 1959 भावनगर IV, बनारस, जबलपुर, मदनगंज, फलटण, ज्ञानपीठ, सहारनपुर, काशी, रोहतक, कलकत्ता, फलटण शास्त्राकार, मारोठ, नातेपूते ।
हविज शब्द रूप - सोनगढ, रोहतक, कलकत्ता, कोल्हापुर, अजमेर, जे. एल. जैनी, फलटण, मारोठ, नातेपृते, अहिंसा मन्दिर, भावनगर VI, जयपुर 1983, 1986 1
भणिज्ज शब्द रूप - सानगढ, रोहतक, कलकत्ता, कोल्हापुर, अजमेर, जे. एल. जैनी, मारोठ, नातेपुते, जयपुर 1986, अहिंसा मन्दिर, बनारस, भावनगर IV, VI, जबलपुर, सोनगढ, ज्ञानपीठ, सहारनपुर, कारंजा ।
ऊण प्रत्ययान्त (धवला ।। 1) पृ. 70 चिंतिऊण/ पृ. 71/ दाऊण/ पृ०103 सहिऊण/ पृ. 71/ काऊण/ पृ. 139 गेण्हिऊण/ पृ. 66 होऊण ।
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