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________________ उक्त प्रकार से अन्य आगमों में विभिन्न स्थलों में दोनों प्रकार के शब्द रूप उपलब्ध हैं । किसी भी शब्द रूप को आगम से बाहा नहीं किया जा सकता । जब इधर से सही मानने की बात कही जाती है, तब वे शब्दों को एकरूप करके और अन्य रूपों को बहिष्कृत करके लोगों से पूछते हैं कि हमारा कौनसा रूप गलत है । कहते हैं - हमारा शब्द आगम का ही तो है - हमने कहाँ बदला । पर, यह तो वीर सेवा मन्दिर द्वारा टिप्पण देने की बात कहकर पहिले प्रारम्भ में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि उपलब्ध अन्यरूप को टिप्पण में दिया जाना चाहिए (आदर्श प्रति के रखने का प्रयोजन भी यही है) ऐसा करने से एकरूपता का परिहार होता है और सभी प्रकार के रूप होने की पुष्टि भी होती है कि आगमों में अमुक शब्दों के अन्य रूप भी हैं । पर, बारम्बार कहने पर भी टिप्पण देना इन्हें शायद इसीलिए स्वीकार नहीं हुआ हो कि इन्हें तो व्याकरण से अन्य शब्द रूपों का बहिष्कार कर एकरूपता करनी इप्ट थी, जैसी कि इन्होंने बहिष्कार (आगम बाहा होने) की घोषणा भी कर दी और एकरूपता भी करके दिखा दी । इन्हें इतना भी ध्यान न आया कि इनके ऐसे व्यवहार से साधारण जनता भ्रमित होगी और वर्तमान में व्याकरण से शुद्धि को महत्व देने वाले (प्राकृत से अनभिज्ञ) सहज ही कहेंगे कि - प्राचीन आगमों की भाषा भ्रष्ट थी और अमुक के द्वारा व्याकरण से शुद्ध किए गए शब्द रूप शुद्ध हैं, आदि । आखिर, इन्हें ऐसा ध्यान आता भी तो क्यों? जब कि इनका उद्देश्य ही भविष्य में, आगमों के संशोधक होने की ख्याति लाभ का बन चुका हो - लोग कहें कि कोई ऐसे भी ज्ञाता हुए जिन्होंने आगम-भाषा की शुद्धि की । ठीक ही है ख्याति की चाह क्या कुछ नहीं करा लेती? इन्होंने इसी चाहना में जल्दी जल्दी कई ग्रन्थों को एक रूप कर दिया और हम चिल्लाते ही रहे । ठीक ही है - 'समरथ को 50
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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