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में प्रयुक्त किया है और इस प्रकार के अनेक शब्दरूप हैं । और 'कुन्दकुन्द शब्दकोश' में भी कुन्दकुन्द द्वारा प्रयुक्त शब्दों के अनेक रूप (विविध ग्रन्थों के उद्धरणों सहित) उद्धृत हैं और यह शब्दकोश आचार्य श्री विद्यासागर जी के आशीर्वाद में उदयपुर से प्रकाशित है । कुन्दकुन्द के विविध शब्द रूपों की झलक उक्त कोश से जानी जा सकती है और यह कोश उपयोगी है।
यहाँ से अब तक अपना कुछ नहीं लिखा गया है - उक्त संपादक की कथनी और करनी पर ही चिन्तन दिया गया है और वह भी आगम-रक्षा करने की दिशा में । वरना यहाँ इनसे किस क्या लेना देना?
प्रसग संशोधित समयसार (कुंदकंद भारती प्रकाशन) का है इसके पुरोवाक् के निर्देशानुसार - सुयकेवली, भणियं, ऊणप्रत्ययान्त शब्द, इक्क, चुक्किज्ज, पित्तव्वं, हबिज्ज, गिण्हइ, कह, मुयइ, जाण, करिज, भणिज और पुग्गल शब्द रूपा का आगम भाषा से बाहा घोषित कर उनके बदले में क्रमश: सुदकेवली, भणिदं, जाणिदूण-णादण, सूणिदूण आदि, चुक्केज्ज, घेत्तव्वं, हवेज, गिण्हदि, किह, मुयदि, जाणे, करेज, भणेज और पोग्गल शब्द रूप कर दिए गए हैं । जबकि आगमों में दोनों प्रकार के शब्द रूप मान्य हैं तव किन्हीं रूपों को आगम भाषा बाहा घोषित कर, संशोधन करना आगम का विरूप अथवा एकरूप करना है । यदि संशोधक के फार्मूले को सही माना जाय तब तो दिगम्बरों के सभी प्राकृत मृल-आगम शब्द रूपों को अशुद्ध मानना पड़ेगा और उनमें भी संशोधन करना पड़ेगा. जैसा कि हमें स्वीकार नहीं । हमें तो आगम में गृहीत सभी शब्दरूप प्रामाणिक हैं - सही हैं । हम किसी भी रूप के बहिष्कार के विरूद्ध हैं ।
संशोधक द्वारा आगम-भाषा बाहा घोषित कुछ शब्द रूप, जिन्हें मान्य आचार्यों ने ग्रहण कर मान्यता दी है. और संशोधक ने बदलकर
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