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________________ इनकी मुन्नुडि से फलित है । इन्होंने औचित्यता परखने का माप-दण्ड भी नहीं बताया । (छ) संपादक के पास कौन सा व्याकरण है जो कुंदकंद से पूर्व ___ था और जैन-शौर सेनी का प्राकृत में हो ? ऐसी अवस्था में संपादक के बयान के अनुसार यह निष्कर्ष निकला कि यह प्रसंग प्राकृत-भाषा की एकरूपता करने जैसा है। फलत: - तब प्राकृत के प्रसिद्ध वेत्ता डा. ए. एन उपाध्ये, डा. हीरालाल जैन, डा. नेमीचन्द जैन, आरा के मन्तव्य जानने का प्रयास करना पड़ा और ज्ञात हुआ कि उन्होंने दिगम्बर आगमों की प्राकृत भाषा के रूप का परीक्षण कर निष्कर्ष तो निकाला कि वह प्राकृत ( पश्चाद्वर्ती व्याकरण से भेद को प्राप्त दायरों से ऊपर) सार्वजनिक प्राकृत है - उसमें कई रूप विद्यमान हैं । पर, वे यह कहने व करने का साहस न कर सकं कि अमुक-अमुक शब्दों के अमुक-अमुक रूप आगम में नहीं हैं या आगम में शब्दों का अमुक रूप ही है । वे शब्द रूपों के बदलाव (इधर-उधर करने) की हिम्मत भी न कर सके - जिसे इन्होंने शब्द रूपों का इधरउधर करके दिखा दिया । हमने डा. जगदीशचन्द्र जी द्वारा निर्दिष्ट व्याकरविभक्त भाषा- भेद के प्रारम्भिक काल को भी पढ़ा - जो काल, प्रासंगिक आगमो के निर्माता आचार्य कुंदकुंद से सदियों बाद का है । फलत: ऐसा लगा कि यह ठीक नहीं हो रहा और तब लिखने के संकल्प-विकल्प उठने लगे-हम सोचते ही रहे, कि - सन् 7) में हमें इन्हीं संपादक जी द्वारा संपादित “रयणसार" की जयपुर से प्रकाशित प्रति भी मिल गई । इसके "पुरोवाक' में संपादक जी ने वेदनादायक जो शब्द लिखे हैं, वे इस प्रकार हैं : 'मुद्रित कुन्दकुन्द साहित्य की वर्तमान भाषा अत्यन्त-भ्रष्ट और
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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