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________________ परम्परित मूल आगम रक्षा प्रसंग बात मई सन् 1978 की है, जब प्रासंगिक (पश्चाद्वर्ती-व्याकरणसंशोधित) समयसार ( कुंदकुंद भारती) का प्रकाशन हुआ और ला. हरीचंद जैन द्वारा मथुरा वाले पं. राजेन्द्रकुमार जी ने हमें भिजवाया । जैसा कि प्राय: होता है ग्रन्थ को पर्याप्त समय बाद देखने का अवसर मिला । जब ग्रन्थ पठन में मृल प्राकृत के शब्दों में एकरूपता का अनुभव हुआ तब पुस्तकालय में उपलब्ध प्रतियों से मिलान किया और हमें वहाँ विभिन्न प्रतियों के शब्दों में अनेकरूपता दृष्टिगत हुई । तब प्रासंगिक समयसार की “मुन्नुडि'' अर्थात् पुगवाक् (दो शब्द ) पढ़ना पड़ा ताकि उससे संपादक की संशोधन दृष्टि मिल जाय । संपादक ने उसमें लिखा है : 1 "पाठ संशोधन की अथवा संपादन की हमारी शैली इस प्रकार रही है . हमने विभिन्न प्रतियों के पाठ भेद संग्रह किये । प्रसंग और ग्रन्थकार के अभिप्रेत के अनुसार उचित पाठ को प्राथमिकता दी । प्राथमिकता देते हुए अमृतचन्द्र के मन्तव्य को अवश्य ध्यान में रखा । जहाँ अमृतचन्द्र मौन हैं वहां जयसेन के मन्तव्य को पाठ के औचित्य के अनुसार स्वीकार किया ।" - मुन्नुडि. पृ 13 ( पुरोवाक ) 2 "समयसार की मुद्रित और लिखित प्रतियों में अधिकांश भूलें भाषा-ज्ञान की कमी के कारण हुई हैं।" - मुन्नुडि. पृ 10 ( पुरोवाक्) 3 “अधिकांश कमियां जैन-शौरसेनी भाषा के रूप को न समझने का परिणाम हैं ।" - मुन्नुडि, पृ 12 (पुरोवाक्) संपादक के उक्त वक्तव्य को पढ़ कर यह जानने में देर न लगी कि - 36
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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