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परिवर्तन किये गये हैं । हैमचन्द आचार्य कुन्दकुन्द आचार्य के बहुत बाद के हैं, ऐसा करने से दिगम्बर जैन आचार्य कुन्दकुन्द श्री हैमचन्द आचार्य के बाद में हुए सिद्ध होते हैं जो नितांत भ्रामक है ।।
अत्यन्त पीड़ा के साथ हमें लिखना पड़ रहा है कि कुन्दकुन्द भारती (संस्था) में बैठकर पं० बलभद्र जी आगम रूप कुन्दकुन्द भारती को ही भ्रष्ट करने पर तुले हैं । जिन आगमों को पढ़ कर वह विद्वान बनें, जो सदैव उनकी आजीवका का सहारा बना, उन्हीं आगमों को भ्रष्ट कहना और उन्हें बदलना तो ऐसा ही है जैसा उसी पेड़ की जड़ें काटना जिस पर वह बैठा हुआ हो । उन्होंने वीर सवा मन्दिर के मंत्री को अपनं संपादकीय में खेद प्रकट करने की शालीनता दिखाने का परामर्श दिया। हमें आशा है कि पं. बलभद्र जी का भ्रम दूर हो गया होगा और वे आगम भाषा को अत्यन्त भ्रष्ट कहकर आगम को विरूप करने की अभद्रता के लिए समाज से खेद प्रकट करने की शालीनता अवश्य दिखायेंगे।
वीर सेवा मन्दिर
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