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औ -डा. ज्योतिप्रसाद जैन ___-'किसी भी प्राचीन ग्रन्थ के मूल पाठ को बदलना या हस्तक्षेप करना किसी के लिए उचित नहीं है । जहां संशय हो या पाठ त्रुटित हो उसी स्थिति में ग्रन्थ की विभिन्न प्रतिलिपियों में प्राप्त पाठान्तरों का पाद टिप्पणी में संकेत किया जा सकता है ।' अं -डा. लालबहादुर शास्त्री, दिल्ली
-'हमें कुन्दकुन्द भारती (आगम) को बदलने से बचाना चाहिए अन्यथा लोग आगम ग्रन्थ तो दूर रहे वे अनादि मूल मंत्र णमोकार मंत्र को भी बदल कर रख देंगे ।' अः -प्रो० गोरावाला खुशालचन्द्र, वाराणसी
__'जिनवाणी भक्तों को मूल को बदले बिना टिप्पणी द्वारा ही अन्तर-प्राकृत रूपों का निर्देश करना चाहिए ताकि पुण्य श्लोक पूज्यवर श्री 108 आ॰ शान्ति मागर जी महाराज के समान समाधि ग्रहण के पहिले "संजद" पद की पुन: स्थिति का उपदेश न देना पड़े ।' क -डा. राजाराम जैन, आरा ___-'मूल आगमों की भाषा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए । जिस भाषा परिवर्तन के आधार पर हमने अर्धमागधी जैनागमों (श्वेताम्बरागमों) का बहिष्कार कर दिया, उसी आधार पर हम अपने मूलागमों की भाषा में परिवर्तन कर उसे अपनाना चाहते हैं, यह कैसे संभव होगा ।' ग -डॉ॰ नेमीचन्द जैन, इन्दौर ____ - वस्तुतः जैन शौरसेनी अन्य प्राकृतों से जुदा है, इस तथ्य को पूरी तरह समझ लेना चाहिए । भाषा के शुद्ध करने की सनक में कहीं ऐसा न हो कि हम जैन-शौरसेनी के मूल व्यक्तित्व से ही हाथ धो बैठें ।'
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