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प्रस्तुत अंक क्यों ?
पाठकों की यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है कि 'अनेकान्त' का प्रस्तुत अंक "परम्परित मूल आगम रक्षा' विशेषांक क्यों ?
कुन्दकुन्द भारती नई दिल्ली जैसी सामाजिक संस्था से प्रथमबार प्रकाशित "प्राकृत विद्या" पत्रिका के जुलाई-दिसम्बर 93 के अंक में पत्र के संपादक श्री बलभद्र जैन ने अपने संपादकीय लेख 'सामाजिक प्रदूषण' शीर्षक के अर्न्तगत वीर सेवा मंदिर पर अनर्गल, मिथ्या एवं भ्रामक आरोपो की बौछार करके उसे प्रदूषण की लपेट में लेने का असफल प्रयास किया है और सस्ती प्रशंसा लूटने के लिए 'प्राकृत विद्या' पत्रिका के प्रचार-प्रसार का एक नमूना प्रस्तुत किया है। । स्मरण रहे कि संपादक महोदय के मतानुसार मुद्रित 'कुन्दकुन्द' भाषा अत्यंत भ्रष्ट एवं अशुद्ध है । इसलिए उन्होंने पूर्व आचार्यों की उपेक्षा करके मूल आगम भाषा को व्याकरण द्वारा शुद्धिकरण के नाम पर सन् 1978 से प्रदूषण फैलाने का दुस्माहसपूर्ण कार्य किया है । उनका उक्त अंक भी प्रदूषण फैलाने का एक और नमूना है। __ वीर सेवा मंदिर मृल आगमों की सुरक्षा के लिए कृत-संकल्प है । इसलिए हमने उक्त आत्मघाती प्रदूषण को साफ करने का भरसक प्रयत्न किया किन्तु उन्हें यह स्वच्छता रास नहीं आई । उन्होंने अहंकार वश क्रोध के वशीभूत होकर डराकर, धमकाकर व उत्तेजित होकर अपमानित करने वाली भाषा के शस्त्र द्वारा वीर सेवा मंदिर की आवाज को दबाने के प्रयत्न किए और कराए और अब उक्त संपादकीय लेख द्वारा पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मिथ्या आरोपों की झड़ी लगा दी । उनकी मुख्य शिकायत यह भी रही है कि हम उनके पत्रों के उत्तर नहीं देते यद्यपि उनके सभी पत्रों के उत्तर दिए गए हैं। ___ अत: वीर सेवा मंदिर ने प्रस्तुत विशेषांक में अब तक घटित वस्तुस्थिति सप्रमाण प्रकाशित करने का निर्णय लिया ताकि समाज भ्रम में न पड़े और असलियत जानकर आगम रक्षा में सतर्क हो सके ।
-भारत भूषण जैन, एडवोकेट
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