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________________ मोक्षमार्ग में चिन्तनीय विकृतियाँ जिन शामन दे आध्यात्मिक पक्ष मे 'सम्यग्दर्शन नान- घोषित कर दिया है। तो कही ज्ञान के मूलस्रोत आगम चारित्राणि मोक्षमार्ग.' कहा है। पर, आज तीनों की के मूल शब्द-रूपो को एकांगी कर या आगम की मनमानी व्याख्यानों, बदलवता जैमा प्रतीत होने लगा है। व्याख्याएँ कर उन्हें विकृत किया जा रहा है और कहीं कछ लोग तो 'नाणिपूण जाण तिणि वि अप्पा ण चेव चारित्र को अपनी स्वच्छन्द सुख-सु वधानमार आडम्बर णिज्यदो' की दुहाई देकर चारित्रादि की उपेक्षा कर, जुटाने, आगम-विरुद्ध स्थानो को स्थायी आवास बनाने मात्र एक सम.ग्दर्शन प्रा!ि के प्रयत्न का उपदेश देने लगे आदि तक मोड दिया जा रहा है। है। उनका तर्क है --- 'एकहि माधे सब सधै।' फिर इस अभी किसी ने हमसे 'साई' शब्द का अर्थ पूछा है। मार्ग में उन्हे सहुलियत यह भी दिखी है कि ज्ञान और उनका कहना है कि किसी ने 'समयसार' की सोलहवी चारित्र की तो अन्य लोगो को पहिचान हो जाती है और गाथा मे गृहीत प्राकृत के 'साहू' शब्द का अर्थ सज्जन या सम्यग्दर्शन की पहिचान होनः केवलोज्ञानगम्य है। पलत. सत्पुरुष के रूप में प्रचारित किया है। वे लिखते हैं कि चाहे जिसे भी सम्पष्टि होने का मार्टीफिकेट देना सरल आप स्पष्ट करे कि दि० प्राकृत आगमों में 'साहू' शब्द २८ है। इसी वह भी खुश और स्वयं भी चारित्रधारण से मल गुणधारी मुनियो के लिए प्रयुक्त है या सर्वमाधारण बचना सहज । क्योकि उनी दृष्टि मे चारित्रधारण करना मज्जन पुरुष के लिए प्रयुक्त है ? संर. इसका स्पष्टीकरण कष्ट साध्य है--- इस तो "गग करना पडता है जो इनके तो हम किसी स्वतत्र अन्य लेख मे करेगे कि दि० आगम सग्रह करने जैग धेय से विपरीत है। चारित्र की उपेक्षा मे प्राकृत भाषा का 'साहू' शब्द 'मुनि' के लिए ही प्रयुक्त करने का तरीका सम्मान मात्र को आगे करने के है। यदि कदाचित् सस्कृत-छाया 'साधु' के सस्कृत अर्थ सिवाय और होमी मकना है? (सज्जन) वत् 'साहू' का भी सज्जन अर्थ लिया जायगा पर, असलियत यह है कि सम्यग्दर्शन प्रयत्नसाध्य मात्र तब तो णमोकार मत्र मे गात ताह' से लोकमान्य सभी होती पण सज्जन (अपेक्षा दृष्टि मे) परमेष्ठी श्रेणी में आ जाएंगे और क्षय, क्षयोपशा की और श्रद्धानरूप आचरण, परिणामों सभी को नमस्कार होगा। आदि । की सरलता आदि को उपस्थिति में स्वय होता है। ऐसा श्रावक के दैनिक धर्माचार एवं अधिकारी को लेकर कदाचित् भी नहीं है कि जीव वाह्य पदाथों के प्रति तीव्र भी अनेको विवाद उठते रहे है। अभी ही भगवान बाहुगाट और परिग्रह इकट्ठा करने से विराम न ले और बली के महामस्तकाभिषेक के अधिकारी व्यतित्व की चर्चा चर्चा मात्र मे सम्यग्दर्शन हो जाय । मात्र सम्यग्दर्शन की को लेकर हमे जयपुर से लेख और पत्र मिले है। लेख चर्चा ने तो चरित्र का सफाया हो कर दिया। जब कि 'वीरवाणी' एव 'समन्वयवाणी' में छप चुका है। पत्र में मो:मार्ग मे चारित्र भी जरूरी है और लोक हित मे भी। हमे लिखा है-इस लेख को कोई निर्भीक सम्पादक ही कहा भी है-'चारित्त खलु धम्मा।' अपने पत्र में स्थान देगा क्योकि समाज का नेतृत्व इसको कति य लोगा ने तो तीनो रलय के रूमो मे बद- पसन्द नहीं करेगा।' लाव जैसा हो कर दिया है । कही आत्मानुभूति (जो स्वय इसस क्या हम ऐसा समझे कि यद्यपि सब लोग नहीं, में त्रयीरूप है) को मात्र अकले सम्यग्दशन का लक्षण ता कुछ ता एस चिन्तक हेही जो नेतृत्व में पूरा भरोसा
SR No.538046
Book TitleAnekant 1993 Book 46 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1993
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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