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________________ जिनसेन के अनुसार ऋषभदेव का योगदान 7 जस्टिस श्री एम० एल० जैन नवी शताब्दी के जिनसेन ने अपने महाकाव्य प्रादि. इन्द्र देवों के साथ उपस्थित हुआ और आज्ञानुसार इस पुराण में भगवान् वृषभदेव के समस्त जीवन का विशद प्रकार रचना कीवर्णन किया है जिसके दो क्ष अत्यन्त रोचक हैं-युवराज- सर्वप्रथम अयोध्या के केन्द्र में व चारो दिशाओं में काल और राज्यकाल । आइए इनकी संक्षिप्त झलक देखी जाए : तदनन्तर निम्न देशों की स्थापना की-कोशल, युवराज काल महादेश, मुकौशल अवन्ती, पुण्ड्र, उण्ड्र, साकेत अश्मक, अपनी पुत्री ब्राह्मी को सिद्ध नम: कहकर सिद्धमातृका रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अग, बग, सुह्य, समुद्रक, अक्षरावली अपने दोनो हाथों से लिखकर लिपि सिखाई काश्मीर, उशीनर. आवर्त, वत्स, पंचाल, मालव, दशांणं, दूसरी पुत्री सुन्दरी को स्थान क्रम से गरिणत सिखाया। कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरुजागल, करहाट, महाराष्ट्र, दोनों पुत्रियों को व्याकरण, छन्द, अल कार का प. सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाट, कोशल, देश देने के साथ-साथ मो से भी अधिक अध्याय वाला चोल, केरल, दारु, अभिसार, सोवीर,शूरमेन, अपरान्तक, व्याकरण लिखा पोर अनेक अध्यायो वाला छन्दशास्त्र विदेह, सिंध, गांधार, यवन, चेदि, पल्लव, काम्बोज, रचा जिसमें प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, एकद्विप्रिलघुक्रिया, आरट, वाहीक, तरुहक. शक और केकय । संख्या और अध्वयोग का निरूपण किया। शब्दालकार इन देशो में सिंचाई व्यवस्था कायम को। सीमाऔर अर्थालकार सिखाए तथा दशप्राणवाले अलंकार संग्रह सुरक्षा के लिए किले किलेदार व अन्नपाल बनाए । मध्यकी रचना भी की। वर्ती इलाको की रक्षा का भार सौपा लुब्धक, आरण्य, अपने पुत्रों को भी अम्नाय के अनुसार अलग-अलग चेरट, पुलिन्द, शबर आदि म्लेच्छ जाति के लोगों को। लोकोपकारी शास्त्र पढ़ाए खासकर(१) भरत को अर्थशास्त्र । इन सब देशों में कोट, प्राकार, परिखा, गोपुर अटारी (२) वृषभसेन को नत्य और गंधर्वशास्त्र । से घेरकर राजधानियाँ कायम की। (३) अमन्तविजय को चित्रकला के साथ अन्य कलाएं फिर निकृष्ट गांव, बड़ेगाव, खेट, खर्वट, महम्ब, तथा विश्वकर्मा की वास्तु विधा। पत्तन. द्रोण मुख, धान्यसंवाह, आदि ग्राम व नगरों की (४) बाहुबली को कामनीति, स्त्रीपुरुष लक्षण पशु रचना की और इन्द्र ने पुरन्दर नाम पाया। __ लक्षणतंत्र, प्रायवेव, धनुर्वेद, रत्नपरीक्षा प्रावि। गांवों के बाहर शूद्रों व किसानों-के रहने के लिए यह सब तो किया कल्पवृक्षों के रहते-रहते। कल्प- बाड़ से घिरे घर बनाए। बाग और तालाब बनवाए। वृक्षों को समाप्ति पर प्रजा मे दुख व्याप्त हो गया तो नदी, पहाड, गुफा, श्मशाम, थूअर, बबूल, वन, पुल आदि भगवान् वृषभदेव ने पूर्व और पश्चिम के विदेह क्षेत्रो में के द्वाग गांवों की सीमाए निर्धारित की। एक गांव की प्रचलित वर्णव्यवस्था, आजीविका के साधन, घर ग्राम सीमा एक कोस ओर बड़े-बड़े गावो की सीमा पांच कोस आदि की रचना के अनुकरण मे अपने पिता के राज्य में रखी गई। भी यही सब स्थापित करने के लिए इन्द्र को बुलाया। अहीरों के घोष, दस गांवों के बीच में एक बड़ा गांव,
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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