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१६पर्व ४४ कि.१
अनेकान्त
पडि लालचंद द्वारा लिखित मौलिक ग्रंथों और प्रतिलिपियों अधो लोक को कथन, अरु ऊरध लोक बिचारि । की प्रशस्ति के आधार पर स्पष्ट है कि संवत् १७६६ से भाषा पाण्डे लाल नै, कीनी मति अनसार ।" संवत् १८३७ तक पांडे लालचंद वयाना, हिन्डोन और
पाण्डे लालचन्द का शिष्य वर्ग। अग्रवाल, खंडेलवाल, करौली मे आ जाकर तथा कुछ समय रहकर ४१ वर्ष
पल्लीवाल और श्रीमाल चारों ही उपजातियों के श्रावक तक निरंतर जैन धर्म की ज्योति प्रज्वलित करते रहे।
पाडे लालचन्द के निष्ठावान् शिष्य थे : संपतिराम राजोवृद्धावस्था मे वे करौली ही बस गए।
रिया के पुत्र मोतीराम (पल्लीवाल) ने वैसाख सुदि ६ पाडे लालचन्द और महाकवि नथमल विलाला : संवत् १८३३ में पांडे लालचन्द से 'वरांग चरित भाषा'
भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल के खजाने पर की प्रतिलिपि करवाई थी। मोतीराम सदावल से जाकर नौकरी करने वाले महाकवि नथमल विलाला ने 'नेमिनाथ करोली बसे थे। पांडे लालचन्द की दो रचनाओं 'ज्ञानार्णव को व्याहुलो' (स० १८१६), अनन्त चतुर्दशी की कथा' भाषा' और 'आत्मानुशासन भाषा' को लिखवाने का (स० १८२४) 'जनगुण बिलास' (स० १८२२) 'समव- निवेदन करने वाले गोधू साह के पुत्र थानसिंह कासलीशरण मंगल' का प्राधा अंश (संवत् १८२४) भरतपुर मे वाल थे। हृदयराम के पुत्र गूजरभल्ल गोगल ने 'आदिही लिखी। माघ शुक्ला गुरुवार, संवत् १८३७ मे पुराण भाषा' तथा गूजरमल के पत्र भीमसेन ने संस्कृत अपना जीवंधर चरित' नथमल ने हिमोन में पूरा किया। रचना 'धर्मचक्र पूजन विधान' की प्रतिलिपिया पाडे लालग्रंथ की प्रशस्ति के अनुसार आजीविका के प्रसग में हिन्दीन चन्द से लिखवाई थी। ये लोग बयाना छोडकर करौली रहने लगे थे
बसे थे । 'कर्मोपदेश रत्नमा ना भाषा' की प्रशस्ति में पाहे मन्नोदक के जोग बसाय, बसे बहुरि हीरापुर आय ।
लालचन्द ने लक्ष्मीदास के तीनो पुत्रों-- राधेकृष्ण, दीपरच्या चरित्र तहां मन लाय, नथमल ने निज पर सुखदाय।
चन्द तथा भूधर को अपना प्रियपात्र लिखा है । करौली में
चिलिया गोत्र के श्रीपाल जैन भौना राम के लिए पांडे संवत् १८२७ मे लिखित 'वरांग चरित भाषा' मे
लालचन्द ने बैसाख शुक्ला ७, संवत् १८१६ मे 'पुण्याश्रव पांडे लालचद ने नथमल बिलाला का सहयोग स्वीकार
कथा कोप भाषा' को प्रतिलिपि कगई । किया है । इससे स्पष्ट है कि नथमल सवत् १८२७ से पूर्व ही हिन्डोन आ गए थे। पांडे लालचद और महा कवि नवमल बिलाला दोनों ही महापुरुषों में सारस्वत सहयोग
सुवाच्र और सुन्दर लिपि मे कई ग्रन्थो के प्रतिलिपि था। नवमल विलाला ने 'सिद्धान्त सार भाषा मे मध्य
कर्ता, संस्कृत, प्राकृन के प्रकाण्ड पंडिन, दार्शनिक, अध्यात्मलोक का सार तो सुषराम पल्लीवाल के सहयोग से सवत्
आख्याता, उदारमना गुरु पाडे लालचन्द अच्छे कवि भी १८२४ मे भरतपुर के दीवान जी मदिर में सम्पन्न किया
थे। ब्रह्मचारी कृष्णदास रचिन संस्कृत के विमलपुराण णा किन्तु उसके अपूर्ण भाग अधोलोक और ऊदलोक के
को कवि ने सवत् १८३७ मे भाषाबद्ध किया। भट्टारक सार को विचारपूर्वक पाहे लालचद ने ही लिखा । नथमल
वर्द्धमान का 'वराग चरित' तथा अन्य सस्कृत ग्रन्थ ज्ञाना. कृत 'सिद्धान्त सार भाषा' अपर नाम 'समवशरण मंगल'
णव को गांडे लालचन्द ने सोरठा, दोहा, कुण्डलिया, सबैया, की प्रशस्ति है
चौपाई, त्रिभगी, छप्पय, भुजंगी आदि विभिन्न छन्दों मे "महावीर जिन यात्रा हेत, नथमल आए सघ समेत ।। भाषाबद्ध किया। सिद्धान्तसार भाषा' का दो-तिहाई पाण्डे लालचद मौ कही, पूरन ग्रन्थ करो तुम सही। भाग तथा कर्मोपदेश रत्नमाला भाषा' लिखकर पांडे नथमल बिच रर आनिक, मर निज हेत विचारि। लालचन्द ने अपने सैद्धान्तिक ज्ञान तथा उसको कागमयी श्री सिद्धान्त जु सार की, भाषा कोनी सार । शैली में प्रस्तुत कर सकने की अपूर्व क्षमता का परिचय