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________________ जैन संस्कृति और साहित्य के पोषक : पाण्डे लालचंद D डॉ० गंगाराम गर्ग भरतपुर राज्य तथा जगरोटी क्षेत्र (करोली हिन्डोन) विभिन्न नगरों में संभावित प्रावास-काल : में साहित्य और अध्यात्म की ज्योति जगाने वाले पाण्डे माघ कृष्ण ११ रविवार, सं० १८१६ में प्रतिलिपिलालचन्द ग्वालियर के प्रसिद्ध भट्टारक विश्वभूषण के कृत सकलकीति की संस्कृत रचना 'चारित्र शुद्धि पूजा' की प्रशिष्य और मुनि ब्रह्मसागर के शिष्य थे। अपने ग्रन्थ प्रशस्ति के आधार पर यह निश्चित है कि पांडे लालचंद विमलनाथ पुराण को प्रशस्ति मे पाण्डे लालचंद ने अपना बंगाल और गुजरात की यात्रा करते हुए संवत् १८१६ से परिचय दिया है। उसके अनुसार यह वयाना हिन्डोन पूर्व ही हिन्डोन में आ चुके थे। पांडे लालचंद ने चैत्र आने से पूर्व अपने गुरु ब्रह्मसागर के साथ बंगाल के शहर __शुक्ल ११, रविवार, संवत् १७९६ में बयाना के चन्द्रप्रभु मकसूदाबाद (मुशिदाबाद) में जगतसेठ माणिकचद के चैत्यालय में महाकवि द्यानतगय के धर्मविलास की प्रतिसान्निध्य में २० वर्ष तक रहे थे। इस स्थान से इन्होने सम्मेद शिखरजी की यात्रा तीन बार ससंघ की। जगतसेठ लिपि की ...."इति श्री धर्मविलास अन्य भाषा संपूर्ण । से विदा होकर पांडे लालचंद ब्रह्मसागर मुनि के साथ संवत् १७९६ वर्षे चैत्र मामे शुक्ल पक्षे एकादश्याम रविगिरिनार पर्वत की यात्रा पर गुजरात भी गए । गिरिनार बासरे बयाना मध्ये श्री चन्द्रप्रभ चैत्यालये श्री ब्रह्मसागर शिष्य पं० लालचंदेन लिखितोयं ग्रन्थ ।" बयामा में ही पर्वत से आकर तीन वर्ष सूरत बन्दरगाह पर रहे । सम्मेद शिखर और गिरिनार जैसे तीर्थो के समान महावीर जी कवि लालचंद ने माघ शुक्ला ५ शनिवार, संवत् १८१८ को पुन्य भूमि मानकर पांडे र ल चन्द हिन्डोन आए। में अपनी कर्मोपदेशरत्नमाला भाषा' रचना लिखी। फागुन वदी ३, संवत् १८२१ में पांडे लालचन्द ने करौली में यात्रा करि गिरनार सिखर की अति सुखदायक ! यशनंदि के 'धर्मचक्र पूजन विधान' की प्रतिलिपि की पुनि पाए हिन्डोन, जहां सब श्रावक लायक । तथा करौली मे ही उन्होंने भादों वदी ३ को 'उत्तरपुराण जिनमत को परभाव देखि, निज मत थिर कीनो। भाषा' लिखी। वैसाख सुदी ७ सवत् १८३३ को पाण्डे महावीर जिन चरण कमल को सरणी लीनो ।। लालचंद ने अपनी रचना 'वरांग चरित भाषा' करौली में ही लिखी। नथमल विलाला द्वारा रचित 'जीवन्धर हीरापुरी (हिन्डोन) मे बसे पडे लालचंद के मन में चरित' को प्रशस्ति के आधार पर सिद्ध होता है कि संवत बयाना नगर की शोभा के प्रति आकर्षण जागा, तब १८३७ के ल गमग पांडे लालचद करौली में ही स्थायी उन्होंने इस शहर मे धी चन्द्रप्रभु जिनालय को अपना तौर पर रहने लग गए थेसाधना-स्थल बनाया नगर करोली के विष श्री जिन गेह मझार । सुख सौं रहत बहुत दिन भये, पांडे लाल बयानै गए । लालचंद पडित रहै, विद्यावान उदार । देखि नगर की सोभा तबै, मन मैं हरष भयो अति तबै । पाण्डे लालचद ने वैसाख शुक्ला ५, सवत् १८२७ चंद्रप्रभु जिनराज की, प्रतिमा परम पुनीत । को 'मात्मानुमासन भाषा' तथा कार्तिक शुक्ला ११, सं० पूजा गोकुलदास नित, करै धर्म सो प्रीत । १८२६ को 'ज्ञानार्णव भाषा' हिन्डोन में लिखी। यहीं पर देखि धरम को अधिक प्रकास तिह थावक हम कोनो बास। उन्होंने संवत १८२७ मे 'वरांग चरित्र भाषा' को लिखा।
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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