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निसारका विशिष्ट संस्करण प्रस्तावित
दशकों में इस ग्रन्थ के कई अन्य प्रकाशन भी हुए। इनमें से कुछ संस्करणों में प्राचीन पाण्डुलिपियों से मिलान करने की बात भी कही गयी है। अधिकांश प्रकाशन पूर्व संस्करणों के पुनर्मुद्रण मात्र है। अभी तक मेरी जानकारी में नियमसार के निम्नलिखित प्रकाशन आये है।
प्राकृत संस्कृत-हिन्दी
(१) मूल प्राकृत, संस्कृत छाया, पद्मप्रममलधारिदेव कृत तात्पर्यवृति नामक संस्कृत टीका एवं ल प्रसाद जी कृत हिन्दी भाषा टीका । प्रकाशक -- हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, सन् १९१६. यह नियमसार का पहला संस्करण है ।
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(२) मा एक श्रीप्रसाद जोहरी, कटरा खुशाल राय, दिल्ली ने वी०नि०सं० २४६८ में कराया है ।
(३) मूल प्राकृत संस्कृत छाया, पद्मप्रभमलधारिदेव कृत तात्पर्य सस्कृत टीका एवं हिन्दी अनुवाद तथा मूल गाथाओ का हिन्दी पद्यानुवाद प्रकाशकसाहित्य प्रकाशन एव प्रचार विभाग, कुन्दकुन्द कहान दि० जैन तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट, ए-४, बापूनगर, जयपुर, सन् १९८४ ।
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(४) मूल प्राकृत पद्मप्रभमलवारिदेव रविन तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीका तथा हिन्दी अनुवाद, सम्पादन नायिका ज्ञानमती जी प्रकाशक दि० जैन त्रिलो दोध संस्थान, हस्तिनापुर व स. २५१ (५) मूत्र प्राकृत आपि ज्ञानमती जी कृत साद्वाद चन्द्रिका संस्कृत टीका तथा हिन्दी अनुवाद प्रकाश - 140 जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर, सन् १६८५ ।
प्राकृत-हिन्दी :
(६) मूल प्राकृत एवं ब्र० शीतलप्रसादजी कृत हिंदी टीका । प्रकाशक विमलसागर जी महाराज, इन्दौर, वी० नि० सं० २०७६ ।
(७) कुदरत भारती के अन्तर्गत आवाद के सभी
ग्रंथ मूल प्राकृत एवं हिन्दी अनुवाद, सकलन-सदनप० नालाल साहित्याचार्य, प्रकाशक - श्रुभण्डार प्रकाशन समिति सन् १९७०
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(5) मूल प्राकृत एवं हिन्दी अनुवाद, सम्पादक - पं० बलभद्र जैन, प्रकाशक- कुन्दकुन्द भारती, दिल्ली, सन् १६८७ ।
प्राकृत-अग्रेजी :
(e) मूल प्राकृत, संस्कृत छाया, अगरसेनकृत अंग्रेजी अनु वाद एवं अंग्रेजी टीका के साथ "दी सेक्रेड बुक्स आफ दी बैम्स" वाल्यूम सेट्रन जैन पब्लिसिंग हाउस,
जिताश्रम लगन से प्रकाशित सन् १९३
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प्राकृत-मराठी :
(१०) मूल प्राकृत एव मराठी अनुवाद, प० नरेन्द्र मिसीकर न्यायतीर्थ, प्रकाशक --- गोपाल अम्बादास चवरे, कारजा, सन् १९६३ ।
प्राकृत - गुजराती :
(११) मूल प्राकृत गाथाएं, उनका गुजराती पद्यानुवाद, संस्कृत टीका और मूल संस्कृत टीका का गुजराती अनुवाद, गुजरानी अनुवादक प० हिम्मतलाल जेठालाल शाह, प्रकाशक- दि० जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़, सन् १६५१ ।
उक्त प्रकाशनों के अतिरिक्त यदि अन्य कोई संस्करण किसी विज्ञान व स्वाध्यायी व्यक्ति की जानकारी म हो तो कृपया सूचना देने का कष्ट करें तथा उपलब्ध भी करायें। उसका व्यय विभाग की ओर से हम वहन करेंगे।
मुद्रित सस्करणों के अतिरिक्त सम्पादन के लिए मैं देश विदेश में उपलब्ध ताड़पत्र तथा कागज पर लिखित हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ एकत्रित कर रहा हूँ यदि किसी की जानकारी मे उपयोगी पाण्डुलिपियाँ हों तो उनकी सूचना दे तथा यदि उनके माध्यम से उसकी फोटो कापी प्राप्त हो सकती हो तो उपलब्ध कराये । इस पर होने वाला व्यय विभाग की ओर से हम वहन करेग ।
नियमसार का प्रस्तावित संस्करण सम्पादन के अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों के अनुसार संपादित किया जायेगा। इस संस्करण में मूल प्राकून गाथाओं तथा पद्मप्रभमलधारिदेव कृतं संस्कृत टीका का सम्पादन देशविदेश में उपलब्ध प्राचीन ताड़पत्रीय तथा स्तलिखित