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'कामा के कवि सेमल का काव्य
को है
चेतन के बड़े श्रद्धापात्र थे। कवि ने स्वयं भी उनके द्वारा से ये भव भव सुखाइ, सेवी श्री जिनराय॥ सहस्रों व्यक्तियों को दिये जाने वाले आहार दान का नवधा भक्ति के विभिन्न अंगों मे पाद सेवन' और उल्लेख करते हुए उनके धर्मानुराग की चर्चा इस प्रकार कीर्तन' में कवि की विशेष आस्था है
करो हो ध्यान, प्रब करो हो ध्यान, जैन कुल जन्म खंडेलवाल निरपतेला वोग सहर नामी
प्रभु चरन कमल को करो हो ध्यान । जास घर है।
जातं होय परम कल्यान । पिता बालकिस्न जाको, धर्म ही सों राग प्रति,
प्रान देव सेवो सुख जान, ति त हौ प्रति दुख महान । और विकल्प जो मन मैं न घर है।
जाकी करत इन्द्रादिक सेव प्रान । धन सो माता जिन जाये ये म्रात,
सोहै अघ तम नासन मान ।। कुल के प्राभूषण वित्त सारू दुख हर है। 'सेट' जिन गुन नित करो हो गान, अभयराम चेतन नाम करायो श्री जू को धाम,
यही है अब तेरौ सयान ॥ या बड़ाई सेढ़ ज्यों की त्यौं करि है॥ अपने आराध्य की उपासना के लिए प्रचलित पद्ध. दीवान जी मन्दिर, वासन गेट, भरतपुर में प्राप्त तियो मे से भक्त सेढ़मल ने नाम स्मरण को अधिक चाहा एक गटके में संढ के ५०-६० पद सारग, सोरठ, गोरी, है। उनकी दृष्टि मे सस.र के दु.ख-सागर से उबारने और परभाती, धनाश्री, काफी, ईमन, बसत, धमाल रागों में पशु पक्षी तक का उद्धार करने में 'जिन' का नाम ही उपलब्ध है। इन पदो के अतिरिक्त इन्होंने दोहे भी सार्थक हैलिखे। अभी तक केवल १२ दोहे उपलब्ध हैं। जिनेन्द्र श्री जिन नाम प्रचार मेरे, श्री जिन नाम अधार । देव के प्रति अपनी एक निष्ठता सेढ़मल ने इन शब्दो में
प्रागम विकट दुख सागर मैं से, ये ही लेह उबार । अभिव्यक्त की है
या पटतर और नहि दूजो, यह हम निहर्च धार । जिनराज देव मोहि भाव हो,
या चित धरते पसु पंषो भी उतरे भवधि पार । ___ कोई कछु न कही क्यों न माई।
नर भव जन्म सफल नहीं ता विन, और सब करनी छार । और न चित्त सुहावै हो॥१
सोढं मन और वचन काय करि, सुमिरत क्यों न गंवार । जाको नाव लेत इक छिन मैं कोट कलेस नसाव हो।
___कवि सेढमल द्वारा लिखित दोहो मे कुछ ही दोहे पूजत चरन कंबल नित ताके, मनवांछित रिध पावै हो।
प्राप्त है। सत महिमा और नाम महिमा स सम्बन्धित इंद्राविक सुर काकू सेवत, देखत त्रिपत न पावै हो।
कवि के दो मुक्तक इस प्रकार हैतीन लोक मन बच तन पूजे, 'सेद' तिन जप्त गाव हो।
दुरजन कभी न सुख कर, लाख करो जो होय । अन्य आराध्यों की लघुता में कवि सेढ़मल ने उनके
दूध पिलायो सर्प कू, हालाहल विष होय ॥१ अवतारी जीवन में भोगे गए दुःख और सुख को महत्वपूर्ण
श्री जिनवर के नाम की, महिमा अगम अपार । कारण माना है। राग और रोष से रहित जिनेन्द्र की आराधना के लिए सेमल किसी भी संकल्प-विकल्प को
भाव भगति कर जपत जे, ते पावति भव पार ।।१२ गुञ्जायश नहीं समझते
सेढ़मल कवि होने के अतिरिक्त श्रेष्ठ लिपिकर्ता थे। कौन हमारी सहाइ प्रभू विन, कोन हमारौ सहाइ । इन्होंने गमचन्द्र कृत चतुर्विशनि पूजा को माघ बदि १३ और कुदेव सकल हम देखें, हाहा करत विहाइ । सवत् १८८८ वि. में लिपिबद्ध किया। इनकी अन्य लिपिनिज दुख टालन को गम नाहीं, सो क्यों पर नसाय । कृत रचना नवल साहि कृत 'वर्धनान पुराण' सवत् १८७७ राग रोष कर पोड़न प्रत हो, सेवग क्यों दुखदाय ।
का है। दोनों लिपिकृत ग्रन्थो की सुवाच्यता और सुन्दरता यात संकलप विकलप छांडो, मन परतीत जु लाइ ।
को देखकर सेमल और उन जैसे सैकड़ों लिपिकर्ताओं के