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________________ "कामां" के कवि सेढमल का काव्य D डा. गंगाराम गर्ग, भरतपुर चौरासी खम्भा और पुष्टिमार्गीय कृष्ण भक्ति सम्प्र. सांगानेर के जैन समाज को प्राप्त कामा के जैन समाज दाय के प्राचीन पीठ के रूप में भरतपुर जिले के कामवन की चिट्ठी से ही मिली थी। क्षत्रियवंशोत्पन्न कवियित्री कस्बे का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व है। यह पानकुंवरि को जिनेन्द्रभक्ति और हेमराजकृत मुक्तक काव्य कस्बा जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह के पुत्र कीति- 'दोहा शतक' ने जैन साहित्य के इतिहास में भी कामा सिंह की जागीरदारी में भी रहा था। दिगम्बर आम्नाय नगर को गरिमापूर्ण स्थान दिलवाया है। मध्य युग मे के सुधारवादी पंथ 'तेरहपंथ' के विकास में इस उपनगर उत्तर भारत मे जैन समाज के उत्सव बड़े उत्साह पूर्वक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। सांगानेर कस्बे मे उत्पन्न व्यापार स्तर पर मनाये जाते थे। इन उत्सवों में 'कामा' जोधराज गोदीका (लेखन काल संवत् १७२३ के आस का रथोत्सव बड़ा प्रसिद्ध था। शताधिक पदों का रचयिता पास) को रूढ़ाचार के प्रति तीव्र विरोध करने को प्रेरणा अचचित जगराम गोदीका (अभी तक अचचित) कामा आकर श्रद्धापूर्वक रथोत्सव में सम्मिलित हुआ था। उसी (पृ. १६ का शेषांश) के शब्दों मेंपुत्र प्रियंकर को सहारा दिये हुए है देवी आकर्षक केश सुफल फली मन कामना जब कामा प्राये। कुण्डल, मुक्तावली, केयूर, बलय, मेखला नपुर पहने हुए रथारूढ़ प्रभु देखि के प्रति आनंद पाये। है। ऊपर आम्र वृक्ष की छाया है। एस. आर. ठाकुर ने इस मूर्ति को पार्वती लिखा है। जबकि डा. ब्रजेन्द्रनाथ वन विहार को जब सुन्यो, वाजिन बजाये । शर्मा ने इस मूर्ति को अम्बिका ही लिखा है। डा. राज तब संघ उछाह सौं जिन मंगल गाये । कुमार शर्मा की सूची में इस प्रतिमा को पार्वती लिखा मूरति सुन्दर सोहनी, लखि नैन सिराये। गया है। उक्त प्रतिमाएं केन्द्रीय संग्रहालय गूजरी महल निरखि निरखि चित्त चोप सौ, फिरि फिरि ललचाये। में संरक्षित है। पुरातत्ववेत्ता, पुरातत्व एवं सग्रहलय फुनि पूजा विधि जब लसी, अंग अंग सरसाये । नलधर सुभाष स्टेडियम के पीछ, तब 'जगराम' जिनंद 4 अष्टांग नवाये ॥ 'कांमा' में प्रति वर्ष आयोजित होने वाली इस 'रथरायपुर (म.प्र.) सन्दर्भ-सूची यात्रा' में विभिन्न स्थानों के श्रावकों के भाग लेने की १. वसुनन्दि /१२ २. वसुनन्दि ४/२१ चर्चा कवि सेटूमल ने भी की है३. शर्मा राजकुमार मध्यप्रदेश के पुरातत्व का सदर्भ कामा सैहर सुहावै हो, देखत चित्त न अघावं । ग्रन्थ भोपाल १६७४ पृ० ४७४ क्रमाक २२९. तेरहपंथी दिढ़ सरधानी, और चलन नहिं भाव हो। ४. शर्मा राजकुमार पूर्वोक्त पृ० ४७६ ० ३०१. जामैं जिनमंविर शुभ सोंहै, देखत चित्त न अघावं । ५. शर्मा राजकुमार पूर्वोक्त पृ०४७६ क्र. २६४. बरस बरस में होइ जाया, भविजन पुन्य कमावै हो। ६. ठाकुर एस.आर. कैटलोग आफ स्कप्चर्स आकिलोजि- देश वेश के श्रावग प्राव, पूजा देखि लुभाव । कल म्यूजियम एम. बी. पृ० ७. 'सेहूं' जे परभावना करि है, सो मनवांछित पावै । ७. शर्मा बुजेन्द्रनाथ 'जैन प्रतिमाएँ, दिल्ली १९७६ पृ.७६ कामा नगर के प्रति अधिक झुकाव और आकर्षण ८. शर्मा राजकुमार पूर्वोक्त पृ० ४६८ क्र. ४८. रखने वाले कवि सेर्मल दीग के प्रसिद्ध सेठ अभैराम और
SR No.538044
Book TitleAnekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1991
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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