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गोल्लराष्ट्र व गोल्लापुर के भावक
इतिहास, ९६६८, पृ० ७२
३६. शिशिर कुमार मित्र, पृ० १
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पर गोल्लादेश व गोहलाचार्य की पहिचान', पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रंथ १६६६, पृ. ४४७-५४ ३७. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा, भारतीय प्राचीन लिपि ४६. A Historical Atlas of South Asia, P. 27. ४७. यशवंत कुमार मलैया, 'वर्धमान पुराख के सोलहवें अधिकार पर विचार', अनेकान अगस्त १६७४ ।
माता, ११८, १० १६६ । ३८. नवलसाह रिया, वर्धमान पुराण,
३९. श्री अ० मा० दिगंबर जैन डायरेक्टरी, प्र० ठाकुरदास ४८. रामजीत जैन, 'गोपाचल सिद्धक्षेत्र, प्र. महावीरापरभगवानदास जवेरी, १९१४ । मागम सेवा समिति, ग्वालियर १९५७ पृ. ६० ४०. गोविन्ददास जैन कोठिया न्यायतीर्थ, प्राचीन शिला- ४९. रामजीत जैन, जैसवाल जैन इतिहास, पृ. ६७ ।
५०. रामजीत जैन, वही, पृ० १७।
५१. रामजीत जैन, बरहियान्वय, पृ० ४२ । ५२. गोलापूर्व डायरेक्टरी ।
लेख, दि०जे० अ०क्षे० आहारजी, १९६२ । ४१. रामजीत जैन, जैसवाल जैन इतिहास ।
४२. रामजीत जैन, गोपाचल सिद्धक्षेत्र, प्र. महावीरपर
मागम सेवा समिति, ग्वालियर, ६८७, १०६ । ४३. यशवंत कुमार मलैया, 'वर्धमान पुराण के सोलहवें
अधिकार पर विचार, अनेकांत जून १६७४ पृ. ५८- ६ YY. Ram Bhushan Prasad Singh, Jainism in Early Medieval Karnatka, 1975, P. 113. ४५. पशवंत कुमार मलैया 'कुवलयमाला कहा के आधार
(१०४ का शेषांश) हाँ १० प्रतिशत लोग जातीय सीमाओं को तोड़ सकते हैं। ८. २१वीं शताब्दी में यह भी हो सकता है कि जो व्यक्ति जातीय बंधन तोड़ना चाहेंगे उन सबको एक और जाति बन जाये । उसका नामकरण क्या होगा यह तो मैं अभी कह नहीं सकता लेकिन उनको भी किसी समुदाय में तो रहना नहीं पड़ेगा। समुदाय मे अलग तो वे भी नही जाना चाहेंगे।
अन्न में इतना ही कहना चाहूंगा कि २१वी शताब्दी में जातीय स्वरूप में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा।
१. जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, जयपुर द्वारा सन् १९८६ में प्रकाशित
२. खण्डेलवाल जैन समाज का वृद्ध इतिहास प्रथम बंट-पृ० सं० ३. देखिए महाकवि ग्रहा जिनदास-व्यक्तित्व एवं कृतिस्व
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५३. यशवंत कुमार मलंया 'गोलापूर्व जाति पर विचार; अनेकांत जून ७२, पृ० १८-०२
५४ गोविन्ददास जैन कोठिया, व्यायतीर्थ, प्राचीन शिलालेख ५५. ० कस्तूरबा सुमन, गोला पूर्वान्वय एक परिशी न सरस्वती वरदपुत्र पं. वंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनंदन ग्रंथ, १६६०, पृ० ३२-५० ।
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सन्दर्भ-ग्रन्थ
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जातियाँ उसी प्रकार बनी रहेंगी जैसी वर्तमान में है और जातीय सीमाओं में रहने से परिवार में मुन-शांति एव प्यार बना रहेगा। लेकिन इतना होने पर भी जातीय बंधन में शिथिलता अवश्य आयेगी इसमे किचित भी शंका नहीं है। लेकिन यह शिथिलता १०१% से अधिक नहीं होगी समाज में अधिकांश परिवार धर्मभीर एवं जाति । मीरा होते हैं इसलिए वे सीमाओं के बाहर जाना पसन्द नहीं करेंगे।
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६.
८६७ अमृत कलश बाबत नगर, किसान मार्ग टोंक रोड, जयपुर
लेखक डा० प्रेमचन्द रावकां प्रकाशक श्री महावीर ग्रंथ अकादमी, जयपुर।
राजस्थान पुरातन मंदिर, शेखपुर द्वारा प्रकाशित | दिगम्बर जैन डाइरेक्टरी प्रकाशन वर्ष १९१४ ।
खंडेलवाल जैन समाज का वृहद् इतिहास, पृ. स. ४६ ।