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क्यों करते हैं लोग संस्थाओं को बदनाम ?
(संदर्भ- श्री गणेश ललवानी का लेख : 'तीर्थकर' अगस्त १६६०) तीर्थकर के अगस्त १९६० के अंक में श्री गणेश दिया उसके २०३ अनुच्छेद पर स्पष्ट लिखा हैललवानी द्वारा लिखित वीर सेवा मन्दिर की "The First Part of his Jain Bibliography आलोचना पढकर हादिक दुख होना स्वाभाविक was Published in the year 1945 The Second
Part remaining incompleted by him, is now था। श्री ललवानी का लेख पूर्वाग्रही और संस्था ।
being completed under the guidence of Dr. A. को बदनाम करने हेतु लिखा हआ प्रतीत होता है।
N. Upadhaye M.A.D Litt of Mysore Univer. अन्यथा, ललवानी जी अखवारबाजी करने से पूर्व sity." एक बार इस संस्था से भी तथ्य जान लेने का प्रयास दुर्भाग्य से इसी बीच डॉ० उपाध्ये स्वर्गवासी तो करते।
हो गए। श्रद्धेय श्री छोटेलाल जैन ने जैन विब्लियोग्राफी ग्रन्थ को प्रकाशन के साथ इण्डैक्स की भी के द्वितीय संस्करण हेतु वर्षों की साधना के पश्चात् आवश्यकता थी, अत: बाबू नन्दलाल जी के सुझाव प्रभूत सामग्री तैयार की। पर खेद है कि वे ग्रन्थ के पर इण्डेक्स बनाने का कार्य डॉ० सत्यरंजन बनर्जी प्रकाशन के पूर्व ही स्वर्गवासी हो गए। उनके को सौप दिया गया। इस कार्य-हेतु डॉ० वनर्जी को पश्चात् उनके भ्राता वाब नन्दलाल जैन ने इसके समय-समय पर भुगतान भी होता रहा। डॉ० बनर्जी संपादन और मुद्रण के साधन जुटाने हेतु अनेकों द्वारा लिखित एक खर्चे के विवरण की छाया प्रति प्रयास किए। अन्ततोगत्वा संपादन कार्य डॉ० आदि आदि सभी विवरण हमारे कार्यालय में सुरक्षित है। नाथ नेमिनाथ उपाध्ये को सौपा गया। अत. ग्रन्थ
___मैं सन् १९८० में संस्था का महासचिव चना की सभी सामग्री संपादन-हेतु डा० उपाध्ये अपने
गया। उक्त ग्रन्थ के मुद्रित फर्मों को ग्रन्थरूप देने के साथ कोल्हापुर ले गए और वहीं पर अपने निर्देश
लिए प्रारम्भिक परिचय की अनिवार्यता का अनुमें प्रेस-कापी के लिए टंकण आदि का कार्य कराया।
भव कर कार्यकारिणी की सहमति से डॉ० बनर्जी ऐसे सभी खर्चों का भुगतान उनको भेजा जाता को प्रारम्भिक परिचय लिखने का आग्रह किया रहा। इस संबंध में डॉ. उपाध्ये के दिनांक २०-1
१२०-१ गया, क्योंकि इण्डैक्स का कार्य भी वे ही कर रहे ६६, १५-७-७० एवं १६-१२ ७० के पत्र और ऐसे
थे। उन्हें २७०० रु. का बैंक ड्राफ्ट नं. ६५१९६६ अन्य अनेक पत्रों और भुगतान की पावती सस्था में दि०६-७-८१ पो. एन.बैक का भेजा गया। सुरक्षित है। डॉ० उपाध्ये ने ग्रन्थ के प्रारम्भिक-परिचय
तक मझे संबंधित विषय की पृष्ठलिखने हेतु मुद्रित फर्मों को संस्था से उनके भूमि ज्ञात नहीं थी और कार्यकारिणी का डॉ. दिनांक १४-३-७४ के पत्र द्वारा मगवाया और साथ बनर्जी पर अटल विश्वास था। अतः जो भी परिही श्रद्धेय छोटेलाल जी का जीवन परिचय भी मंग- चय डॉ० बनर्जी ने लिखकर भेजा, मैंने उसे उसी वाया। श्री नन्दलालजी ने उनका जो जीवन परिचय रूप में मद्रित करा कर ग्रन्थ का प्रकाशन कर दिया