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________________ २६, वर्ष ४३; कि० ३ अनेकान्त और सद्भावना के रूप में ग्रन्थ की प्रति डॉ० बनर्जी जैन में अन्तर नही माना । यदि भेद-भाव होता तो को भी भेज दी । संपादक के रूप में डॉ० बनर्जी का नाम भी सहज - रूप में नहीं चला जाता । जैसे ही ग्रन्थ कार्यकारिणी के समक्ष आया, वस्तुस्थिति जान लेने पर संस्था में सुरक्षित रिकार्ड के अनुसार संपादन में डॉ० उपःध्ये का नाम देना अनिवार्य हो गया । इसकी सूचना डॉ० बनर्जी को दिनांक ३-१२-०२ के पत्र द्वारा दे दी गई। मुझे तो स्वप्न में भी आशा नहीं थी कि डॉ० बनर्जी जैसे उच्चकोटि के विद्वान् मेरी अजानकारी और डॉ० उपाध्ये के स्वर्गवास का अनुचित लाभ उठाकर संपादन का श्रेय स्वयं ओढ़ लेगे 1 वीर सेवा मन्दिर सदैव जैनदर्शन और साहित्य के शोध और खोज के कार्यों में संलग्न रहा है । अनेकों अजैन विद्वानों के सहयोग से संस्था गौरवान्वित होती रही है । संस्था ने साहित्यिक कार्यों में कभी भी जैन-अजैन अथवा दिगम्बर श्वेताम्बर श्री ललवानी का यह कथन भी एकदम असत्य है कि वीर सेवा मन्दिर ने डॉ० भागचन्द्र जैन को मात्र २५ - ३० पृष्ठों के इण्डेक्स हेतु पाच हजार रुपयों का भुगतान किया है। यदि आप उक्त लेख को प्रकाशित करने के पूर्व वस्तुस्थिति से अवगत हो जाते तो आपको हमारा स्पष्टीकरण छापने का कष्ट ही नही उठाना पड़ता । सद्भावनाओं सहित, भवदीय-जैन सुभाष महासचिव - वीर सेवा मन्दिर दरियागंज, नई दिल्ली-२ संपादकीय नोट जैन पत्रकारिता धन्दा या चोंचें लड़ाने लडवाने का कार्य - पीत पत्रकारिता नहीं, स्वस्थ जागरण है और इसमें धर्म और धार्मिक संस्थाओं की निश्छल - सुरक्षा का उत्तरदायित्वनिर्वाह भी समाहित है । फलतः किन्ही विवादित प्रसंगों में लेखक और पत्रकार दोनों के द्वारा पक्षविपक्ष से पूरी जानकारी कर लेना हो स्वस्थ - पत्रकारिता है । वीर सेवा मन्दिर के महासचिव ने उक्त पत्र सम्पादक 'तीर्थकर और उसकी प्रति श्री गणेश ललवानी को भी भेजी है। पत्र के साथ डॉ० उपाध्ये के निर्दिष्ट मूल-पत्रों की छाया प्रतियां भी सलग्न की हैं । इसके सिवाय हमने जन-विब्लियोग्राफी संबंधी उपलब्ध (सुरक्षित) पूरी संचिका और तद्विषयक तत्कालीन कार्यकारिणी के निर्णय भी पढ़े है । निर्विवाद रूप से संपादकत्व डॉ० उपाध्ये का ही सिद्ध होता है । यह सच है कि इण्डेक्स के कार्यभार का उत्तरदायित्व डॉ० सत्यरंजन बनर्जी ने लिया और इस कार्य के हेतु उन्हें समय-समय पर धन का भुगतान भी किया जाता रहा है । इण्डैक्स के अभाव में संस्था को सभी प्रकार की क्षति उठानी पड़ रही है । डॉ० बनर्जी जैसे सम्भ्रान्त विद्वान् से ऐसी अपेक्षा नहीं थी । अब उत्तरदायित्व श्री बनवानी जी का हो जाता है कि वे डॉ० बनर्जी से इण्डेक्स का कार्य सम्पन्न कराकर संस्था को दिलाएं। क्योंकि उनके लेख से स्पष्ट है कि श्री ललवानी जो, डॉ० बनर्जी के काफी नजदीक हैं । सम्पादक
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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