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राज्य संग्रहालय धुबेला की सर्वतोभद्रिका मूर्तियाँ
( श्री नरेश कुमार पाठक
सर्वतोभद्रिका या सर्वतोभद्र प्रतिमा का अर्थ है वह दृष्टि से मति १०वी शती ईस्वी की है। प्रतिमा जो सभी ओर से शुभ या मंगलकारी है। अर्थात ब्रकट विद्या सदन गैवा से प्राप्त ११वी शती ईस्वी ऐसा शिल्पकार्य जिम में एक ही शिल्पखण्ड में चारो ओर की सर्वतोभद्रिका (म० ० ४०२ प्रतिमा मे मदिर शिखर चार मतिया निरूपित हो, पहली शती ई० मथुग मे आकृति निर्मित है जिसके ऊपर दो कलश है। चारो ओर इसका निर्माण प्रारम्भ हआ। इन मूर्तियो मे चारो दिशा श्रमश. तीर्थकर आदिनाथ, अजितनाथ, पार्श्वनाथ एव में चार जिन मूर्तियाँ उत्कीर्ण है । ये मूर्तियां या तो एक नेमिनाथ का अकन है'। चारो ओर वितान मे मालाधारी ही जिन की या अलग-अलग जिनो की होती है। ऐसी विद्याधर, त्रिछत्र का अकन है। उनके कार चारो ओर मतियों को चतुबिम्बजिन चौमुखी और चतुर्मुख भी कहा चार-चार जिन प्रतिमाएँ अकित है। पार्श्व में चारो ओर गया है। ऐसी प्रतिमाएं दिगम्बर स्थलो मे विशेष लोक- चावरधारी एव पादपीठ पर प्रत्येक ओर विपरीत प्रिय थी।' सर्वतोभद्रिका प्रतिमाओ को दो वर्गों में बाटा दिशा मे मुख किये सिंह मध्य मे च क पादपीठ पर एक जा सकता है। पहले वर्ग मे ऐसो मूर्तियां है, जिनमे एक पार्श्व मे, क्रमशः यक्षणी चक्रेश्वरी, रोहिणी, पदमावती ही जिन की चार मूर्तियां उत्कीर्ण है। दूसरे वर्ग की मूतियो एवं अम्बिका अंकित है। दूसरे पार्श्व में उपासिकाएँ में चार अलग-अलग जिन मतिया है। राज्य संग्रहालय अकित है। लाल बलुआ पत्थर पर निमित । २०४५२४ धबेला में प्रथम वर्ग की एक एव द्वितीय वर्ग की दो कुल ५२ सें० मी० आवार की प्रतिमा कलचरी कालीन कला तीन सर्वतोभद्रिका प्रतिमा संग्रहित है, जिनका विवरण का उत्कृष्ट कृति है। निम्नानुसार है :
वकट विद्या सदन रीवा से ही प्राप्त एक खण्डित ___मऊ-सहानिया जिला छतरपुर से प्राप्त सर्वतोभद्रिका स्तम्भ खण्ड पर (स० ऋ० ४७४) चारों ओर कायोत्सर्ग प्रतिमा के चारों ओर एक-एक तीर्थकर (स० ऋ० १) मुद्रा मे तीर्थक र अकित है। सभी तीर्थकरो के नीचे से पदमासन मे ध्यानस्थ बैठे हुये हैं। इस प्रकार की प्रति- पैर व मह के चेहरे पूर्णत: भग्न हो चुके है। सभी के कानों माओ को किसी भी तरफ से देखा जाय तीर्थकर के दर्शन मे लम्ब कर्णचाप एव वक्ष पर श्रीवत्म चिाह का आलेखन हो जाते है, जिसमे मानव का कल्याण होता है। इसी है। प्रत्येक तीर्थन्कर के पार्श्व मे प्रत्येक प्रोर खण्डित लिये चारो तरफ मूर्तियों वाली प्रतिमाओ को सर्वतो. अवस्था मे चावरधारिणे का अकन है । ऊपर त्रिछत्र की भद्रिका की संज्ञा दी गई है। प्रस्तुत सर्वतोभद्रिका मे आकृति का लघुशिखर बना हुआ है। प्रतिमा काफी क्रमश: आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ एवं वद्ध भान खण्डित होने के कारण तीर्थन्करों को पहिचाना नही जा महावीर स्वामी अपने ध्वज लाछन क्रमशः नन्दी, शख, सपं सकता, परन्तु यह स्पष्ट है कि ये चारों प्रतिमाएँ एक ही एवं सिंह सहित अंकित है। सभी के वितान मे छन, तीर्थकर से संबधित होगी। क्योकि इसमे आदिनाथ एव दुन्दभिक मालाधारी विद्याधर युगल, चारो ओर चावर- पार्श्वनाथ का अकन नही है। इन दोनो तीर्थकरो का धारी पादपीठ पर चारो ओर विपरीत दिशा मे मुख अलग-अलग तीर्थकर प्रतिमा होने पर अकन होना अनिकिये सिंह, पादपीठ के नीचे चारो ओर ५-५ कुल २० वार्य होना है । प्रतिमा काफी भग्न अवस्था में हैं । परन्तु सेवक अजलीबद्ध अंकित है । नीचे की कीर्तिमुख अलकरण निर्मित के समय अवश्य ही सुन्दर रही होगी। ६०x२५ बने हये हैं। ८५४४५४४५ सें० मी० आकार की x२० सें. मी. आकार की बलुआ पत्थर पर निर्मित प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित है, कालक्रम की प्रतिमा १२वीं शनी ईस्वी की है। १. तिवारी मारूती नन्दन प्रसाद, "जंन प्रतिमा विज्ञान" वाराणासी १९८१ पृ. १४८ । २. वही पृष्ठ १४६ । ३. दीक्षित स० का० राजकीय संग्रहालय, धुबेला, की मार्गदशिका, भोपाल, संवत् २०१५, पृ० १२ ।