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________________ संस्कृत के जैन सन्देश काव्य संस्कृत साहित्य मे कतिपय परम्पराओ का पल्लवन होता रहा है। इनमे सन्देश काव्य परम्परा भी एक है। कवियों द्वारा किसी को दूत बनाकर विरहणियों के सन्देश को प्रेषित किया गया है | आदि कवि बाल्मीकि ने पवनसुत हनुमान को राम का दूत बनाकर सीता के पास भेजा था । कदाचिद् इसी से कल्पना ग्रहण कर कालिदास ने मेघ को दूत बनाकर किसी यक्ष के द्वारा यक्षिणी के पास सन्देश भिजवाया । यही सन्देश काव्य "मेघदूत" के नाम से प्रसिद्ध हुआ । बस क्या था इसी को आधार बनाकर दूत काव्य अथवा सन्देश काव्य परम्परा चल पड़ी । इस परम्परा का अनुसरण घोयी पवनदूत आदि काव्यों द्वारा किया गया । इस सन्देश काव्य परम्परा को जैन कवियों ने भी अपनाया। जम्बू कवि का द्रदूत पवनदूत से भी प्राचीन काव्य है । अन्य जैन कवियों ने सन्देश काव्य परम्परा का अनुसरण करते हुए अनेक सन्देश काव्य लिखे सन्देश काव्यों की एक दिशा नवीन भावो तथा विषयों के वर्णन की ओर प्रवाहित हुई जैन कवियों ने अपने दर्शन के गूढ़ सिद्धान्तों की अभिव्यन्जना के लिए सन्देश काव्य का आश्रय लिया । प्रेम सन्देश के स्थान पर इन नवीन काव्यो मे आध्यात्मिक उन्नति के विषय मे सन्देश प्रेरित किया गया है । इन सन्देश काव्यो मे जैन दर्शन के आध्यात्मिक तत्व का निरूपण काव्य की सरल भाषा में हुआ है । इनमे सांसारिकता का पुट बहुत कम मिलता है। सांसारिक विषय रागों का वर्णन केवल मात्र आध्यात्मिक तत्व की महता को दर्शाने हेतु ही किया गया है। प्रस्तुत शोधप्रबन्ध "संस्कृत के जैन सन्देश काव्य" भी सन्देश काव्य परम्परा में लिखे गये जैन सन्देश काव्यों के सौन्दर्य विश्ले धन्य करने हेतु लिया गया है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध आठ अध्यायों में विभक्त किया D कु० कल्पना देवी जैन गया है । प्रथम अध्याय के अन्तर्गत सन्देश काव्यो का सामान्य परिचय देते हुए सन्देश काव्य-परम्परा पर प्रकाश डाला गया है । कालिदास द्वारा रचित "मेघदूत" संस्कृत साहित्य की वह अनुपम कृति है जिसके द्वारा सन्देश काव्य परम्परा को सुदृढता प्राप्त हुई है। इसी अनुपम कृति को अपना प्रेरणा खोत मानकर जैन कवियो ने जैन सन्देश काव्य की रचना की । इन काव्यो मे सन्देश काव्य-परम्परा को एक नया मोड दिया गया है। मेघदूत का अनुसरण शीस होने पर भी ये काव्य सांसारिकता एवं मोह-माया को किचित् मात्र स्थान नही देते । तप के द्वारा प्राप्त चरम सत्य को इन काव्यों में विशेष स्थान प्राप्त है । इन्ही विशेषताओं का उल्लेख प्रथम अध्याय मे किया गया है । मोक्ष प्राप्ति की प्रेरणा एवं श्रमण संस्कृति का निर्वाह इन काव्यो की मुख्य विशेषताओं में आते है । इस प्रकार प्रथम अध्याय के अन्तर्गत सन्देश काव्यो का सामान्य परि चय, जैन सन्देश काव्यो का मूल स्रोत एवं विशेषताओं को स्पष्ट करते हुए प्रस्तुत अध्ययन के विषय क्षेत्र को बताया गया है । द्वितीय अध्याय में जैन सन्देश काव्यो के ग्रन्थो का परिचय एवं संक्षिप्त कथा को प्रस्तुत किया गया है। इन जैन सन्देश काव्यो की कथावस्तु एक ही तत्व पर जोर डालती है और वह है मोक्ष। इन काव्यो का नायक प्रारम्भ में तो सांसारिक सुखो का उपभोग करता है परन्तु किसी कारण वश उसे सांसारिक मोह-माया से विरक्ति हो जाती और वह संसार के भोग विलासों से विरक्त होकर तप मे लीन हो मोक्ष प्राप्ति करता है। जैन सन्देश का का पहला उद्देश्य है जीवन के चरम सत्य मोक्ष से परिचित कराना। समस्त सांसारिक मोह विलास क्षण विध्वंसी है । सच्चा सुख इन सांसारिक बन्धनों का त्याग एव मोक्ष प्राप्ति में है। इसी आध्यात्मिक तथ्य को पाठक जनो
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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