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________________ कन्नड़ के मेन साहित्यकार प्रीति की प्राप्ति होती है-यही नागचंद्र का सौदर्य-सूत्र धर्मामत रचना करते समय कवि ने यह संकल्प किया है; मल्लिनाथ पुराण महाकाव्य के सौदर्य युक्त है।" कि वे साधारण जनों की समझ में जैन-दर्शन आ सके, उसका वैराग्य प्रकरण काफी हृदयस्पर्शी बन पड़ा है। इसलिए ठेठ कन्नड़ में लिखेंगे और अपनी कृति में संस्कृत श्री अभिनव पम्प के जीवन-तथ्य अधिक नहीं मिलते। के कठिन शब्दो का प्रयोग नहीं करेंगे क्योकि जिन्हें सस्कृत लगता है उनका जन्म विजयपुर (आधनिक बीजापूर) मे प्रिय है, वे सस्कृत में लिखे। इसका यह अर्थ नहीं है कि हआ था। वे काफी सम्पन्न व्यक्ति थे। वहीं उन्होने वे संस्कृत के विरोधी थे। वे विरोधी थे कठिन सस्कृत 'मल्लिनाथ जिनालय' बनवाया था। उनका नाम व पद्य शब्दो वाली कन्नड़ के। ऐसी भाषा को वे घी और तेल उनके श्रवणबेलगोल आदि अनेक स्थानों के शिलालेखो में का मिश्रण समझते थे। उन्होंने अपने यूग की कन्नड का पाए जाते हैं। उनकी उपाधियां साहित्य विद्याधर, भारती आश्रय सामान्य जनों के हित के लिए लिया। इस प्रकार कर्णपूर आदि थी। ये होयसल नरेश विष्णुवर्धन (१९०४ वे प्राचीन कन्नड़ की भी अपेक्षा समकालीन कन्नड़ के ११४१ ई.) के दरबार मे भी कवि के रूप मे रहे थे। पक्षधर ठहरते हैं। वे जनवादी कथालेखक के रूप में ( विष्णुवर्धन के जैन होने के लिए देखिए 'हलेविड' कन्नड़ साहित्य में अपना एक विशेष स्थान रखते हैं। उन्होंने कन्नड़ कहावतों और मुहावरों का कुशल प्रयोग प्रकरण)। किया है। सरल, सरस, चुभती, हास्यपूर्ण शैली के लिए कवयित्री कंति-कहा जाता है कि ये नागपद्र को कन्नड़ लेखकों में वे एक विशेष स्थान रखते हैं । धर्मामृत समकालीन थी। अभिनव पम्प यदि आधी पंक्ति बोलते का रचना-काल १११२ ई. माना जाता है। विद्वानों का तो वे पंक्ति पूरी कर दिया करती थीं। उनकी समस्या अनुमान है कि इन्होने एक व्याकरण भी लिखा था जो पूर्ति पद्यात्मक रचनाएँ दतकथा का विषय बन गई है। अभी उपलब्ध नही हो सका है।। यह भी कहा जाता है कि नागचंद्र ने प्रण किया कि वे 'कंति' (जैन भिक्षणी या भक्त-महिला के लिए प्रयुक्त गरिएतज्ञ और कवि राजादित्य ने गणित सम्बन्धी अपनी प्रशसा करवा लेगे। छः ग्रंथो की रचना कर ड़ में की है। ये हैं-१. व्यवहार सोनकचा और भिक्षणी ने उनकी गणित जिसमे सहजयराशि, सहजनवराशि आदि का प्रशसा मे पद्य रच दिए थे। जो भी हो, जैन-भिक्षणी की विधान है । २. क्षेत्रगणित, ३. व्यवहारत्न, ४. जैनगणित समस्या-पूर्ति का भी कन्नड़ में स्थान है। यह प्रथम सूत्रटोकोदाहरण में प्रश्न देकर उत्तर पाने का विधान बतकवयित्री 'अभिनव वाग्देवी' की उपाधि से भी विभषित लाया गया है। ५. चित्रपुहुम ग्रथ टीका और सूत्र रूप में है। तथा ६. लीलावती (पद्य) मेंगणित की समस्यायें थीं ऐसा पता चलता है। उदाहरण सहित समझाई गई है। इनकी रचनाएं पद्य में मुनि नयसेन ने कन्नड़ भाषा में 'धर्मामत' की रचना सरल शैली में होने पर भी इन्होने सूत्रों एवं उदाहरणों की है। इस कृति के १४ आश्वास हैं और उनमे १४ का सफल प्रयोग किया है। ये ११२० ई. में विष्णुवर्धन गुणवतो के सरल विवेचन के साथ ही चौदह महापुरुषों के दरबार मे थे ऐसा अनुमान किया जाता है। की कथायें निबद्ध हैं जिन्होंने इनका पालन कर ऐस सिद्धि प्राप्त की। मुनि ने अपनी आम्नाय परम्परा के अनुसार गो (गाय) की व्याधियों, उनसे संबंधित औषधियों, अपनी मुनि-पूर्व अवस्था का परिचय नही दिया है। फिर मंत्रों आदि का विवेचन कोतिवर्म ने अपने ग्रंय 'गोवंच' में भी यह ज्ञात होता है कि ने धारवाड़ जिले के मुलुगुन्द किया है । इनका समय ११२५ ई० अनुमानित है । इनके नामक स्थान के निवासी थे और आचार्य नयसेन उनके पिता चालुक्य नरेश त्रैलोक्यमल थे। उनकी जैन रानी से गये जो कि आचार्य जिनसेन, गुणभद्र आदि की परंपरा इनका जन्म अनुमानित किया जाता है। उन्होने अपनी उपाधियों में 'सम्यक्त्वरत्नाकर' भी गिनाई है। के ये
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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