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________________ ६ वर्ष ४३, कि. ३ भनेकान्त रखकर की गई है किंतु उसमे कवि ने यथोचित परिवतन में विशेष जानकारी नही है। किंतु उनकी कृति 'पम्परामाकर उसे एक स्वतंत्र रचना बना दिया है। बाणभट्ट ने यण' (दूसरा नाम रामबद्र चरित पुराण) ने इन्हे कन्नड जहाँ केवल गद्य का आश्रय लिया है वहाँ नागवर्म ने गद्य साहित्य में अमर बना दिया है । अभिनव या श्रेष्ठ पम्प और पद्य दोनों का। इनका समय ६६० ई० माना जाता या दूसरे पम्प नाम इन्होने स्वय अपने को ही दिया था किंतु अब वे इसी नाम से विख्यात हैं । जैन 'पउमचरिउ दर्गसिंह की रचना 'पंचतंत्र' है। कन्नड़ में अनूदित। या (पदमपुराण) के आधार पर लिखित रामायण एक लिखित यह रचना विष्णु शर्मा के संस्कृत पचता का सरस काव्य है। उसमे जैन मान्यताएं यथा हनुमान अनवाद नही है बल्कि गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' से चुनी विद्याधर जातीय तथा वानर वशीय थे। सुग्रीव, बालि गई कथाओं के आधार पर बसुनागमट्र द्वारा चित 'पच- आदि की वजाओं पर वार । आदि की ध्वजाओं पर वानर (बंदर) का निशान था; तंत्र'का कामड़ रूपांतर है। वसुनागभट्ट का पचतत्र रावण के दस मह नही थे अपितु जन्म के समय दर्पण में जावा' तीन रूपों में प्रचलित था-दो पद्यात्मक और उसके दम में दिखाई दियो । मक | उसमे जैनधर्म के तत्व रहे होगे तभी दुग- दसियों, सैकड़ों छवियो के रूप में आज भी देखी जा नितमे जैनधर्म के सिद्धांत और पारिभाषिक जा सकती है । इत्यादि, इस रामायण का प्रमुख रस शांत जाते है। उनका पचतत्र गद्य-पद्य मिश्रित है। रस है और जीवन का अतिम लक्ष्य मुक्ति इसके पात्रों के सिंह बाह्मण थे। उनका समय १०३० ३० माना जीवन में प्रतिलक्षित होता है। पम्प रामायण में रावण जाता विद्वानों की राय है कि जैनधर्म के कर्नाटक में भी मानवोचित गुणो से हीन नहीं है । यह रामायण संभउन दिनों प्रभाव के कारण दुर्गसिंह ने वसुनागभट्ट के ग्रंथ वत: कन्नड भाषा में पहली रामायण है। कन्नड में को अपना आधार बनाया। परवर्ती काल में जै। परम्परानुसार अन्य कथाएं भी लिखी कन्नड में ज्योतिष ग्रंथ के अभाव की पूर्ति करने की गई। यथा want गई। यथा षट्पदी की 'कुमुदेन्दु रामायण (लगभग सिविकलोत्तम'श्रीधराचार्य ने 'जातक तिलक'नामक १२७५ ई०), चन्द्रशेखर और पद्मनाभ (१.००-१७५० पस्तक लिखी। इस रचना के अन्तिम पद्य से ज्ञात होता है. नारित है कि उन्होंने 'चंद्रप्रभचरित' का भी सृजन किया था जो 'रामशावतार' उपलब्ध नहीं हो सका है। इसका समर्थन १२६० ई० को 'चामुंडराय पुगण' (१७८ ई०) नयसेन के 'धर्मामत' कृति 'नागकुमारचरित' से भी होता है। (१११२ ई०) तथा नागराज के 'पुण्याश्रव (१३३१ ई.) उमास्वाति के प्रसिद्ध 'तत्वार्थसूत्र' (संस्कृत) की एवं अन्य कृतियो में भी पाई जाती हैं । इस प्रकार कन्नर सन के लेखक है 'दिवाकरनन्दि' इन्होने उसकी में जैन रामायण कथा की धारा भी सबल रूप से प्रवाहित रचना १०६२ ई० के लगभग की होगी ऐमा अनुमान है। रही है। अपने ग्रंथ के प्रारम्भ मे उन्होने प्रतिज्ञा की है कि वे अभिनव पम्प की दूसरी रचना 'मल्लिनाथ पुराण' मंदद्धि जनों के हित के लिए तत्वार्थसूत्र मूल का अर्थ है। इसमें उन्नीसवें तीर्थंकर के जीवन का काव्यमय वर्णन कन्नड़ मे कहेंगे। है। इसकी कथा छोटी है किंतु शांत रस के प्रवाह के ___ 'सुकुमारचरिते' नामक गद्य-पद्य मिश्रित (पू) कारण "वह एक उच्चकोटि की कृति है । वह महाकाव्य काव्य के रचयिता 'शांतिनाथ' ने सुकुमार की कथा के सत्व से युक्त सत्यव्य है।" (श्री मुगलि) कन्नड प्रभावोत्पादक कन्नड़ मे लिखी है । उसका रचनाकाल या साहित्य के इतिहास के लेखक श्री मोगल ने इसके सम्बन्ध कवि का समय १०६८ ई० निर्धारित किया गया है । यह में भी द० रा ० बेन्द्र ने यह मत उद्धृत किया है, "जिन भी एक उत्कृष्ट कृति मानी गई है। (तीर्थ कर) के अलावा बाकी सब काम-पति की श्रृंगारमागचंद्रया अभिनव पम्प-इनके जीवन के विषय सष्टि है, शांत रस के द्वारा ही सच्चे सौंदर्य आनंद और
SR No.538043
Book TitleAnekant 1990 Book 43 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1990
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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